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________________ सागारधर्मामृत [ ३९ अपना जन्म सफल मानते हैं और कोई केवल सुखका सेवन करनेसे ही अपना जन्म सफल मानते हैं । इसीतरह लोक और वेदको माननेवाले तथा आपको शास्त्रों का जानकार माननेवाले ऐसे बहुत से पुरुष हैं जो इन तीनोंमेंसे दो दोको सेवन करने से अपना जन्म सफल मानते हैं अर्थात् कितने ही धर्म और यशको, कितने ही धर्म और सुखको तथा कितने ही यश और सुखको सेवन करने से ही अपना जन्म सफल मानते हैं । परंतु लोक और शास्त्र के जानकार इन दोनों को संतोष देनेवाले हम लोगोंका तो यह ही मत है कि धर्म यश और सुख इन तीनों को सेवन करनेसे ही मनुष्यजन्मके दिन सफल गिने जाते हैं अर्थात् तीनोंके सेवन करते हुये जो दिन निकलते है वेही सफल हैं । सूत्रमें दिये हुये एवकारका यह अभिप्राय है कि इन तीनों से एक एक अथवा दो दोके सेवन करने से मनुष्यजन्म की सफलता कभी नहीं हो सकती । इसके कहने से ग्रंथकारका यह अभिप्राय है कि प्रत्येक मनुष्यको प्रतिदिन अपनी शक्तिके अनुसार इन तीनोंका सेवन करना चाहिये, मनुष्यका यह एक कर्तव्य है ॥ १४ ॥ आगे-सम्यग्दर्शन प्राप्त होनेके पीछे यदि सकलसंयमी होने की सामग्री न मिले तो काललन्धि आदि के मिलने पर संयतासंयत अर्थात् एकदेश संयमी अवश्य होना चाहिये इसीका उपदेश देते हैं
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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