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________________ (८] प्रथम अध्याय इसप्रकार सामान्यरीतिसे मिथ्यात्वका प्रभाव दिखलाकर अब आगे उसी मिथ्यात्व के दृष्टांत दिखलाकर तीन भेद दिखलाते हैं-- केषांचिदंधतमसायतेऽगृहीतं ग्रहायतेन्येषां । मिथ्यात्वमिह गृहीतं शल्यति सांशयिकमपरेषां ॥५॥ अर्थ-- मिथ्यात्वके तीन भेद हैं अग्रहीत, ग्रहीत और सांशयिक । परोपदेशके विना अनादिकालसे संतान दर संतानरूपसे चले आये ऐसे तत्त्वोंमें श्रद्धान न करनेरूप जीवों के परिणामोंको अग्रहीत मिथ्यात्व कहते हैं । परोपदेशसे तत्त्वोंका श्रद्धान न करना अथवा अतत्त्वोंका श्रद्धान करना ग्रहीत मिथ्यात्व है । इसीतरह मिथ्यात्व कर्मके उदय होनेपर और ज्ञानावरण कर्मके विशेष उदय होनेपर " वीतराग सर्वज्ञके द्वारा कहे हुये अरहंतके मतमें जीवादि पदार्थों का स्वरूप जो अनेक धर्मात्मक माना है वह यथार्थ है अथवा नहीं है " ऐसी चंचल प्रतीतिको सांशयिक मिथ्यात्व कहते हैं। इस संसार में एकेद्रियसे लेकर कितने ही संज्ञी पर्यंत जीवोंके अग्रहीत मिथ्यात्व गाढ अंधकारके समान काम करता है, क्योंकि जिसप्रकार गाढ अंधकारमें किसी पदार्थका विश्वास नहीं होता उसी प्रकार अग्रहीत मिथ्यात्वमें भी गाढ अज्ञानताका परिणाम होनेसे किसी पदा र्थका विश्वास वा श्रद्धान नहीं होता । दूसरा ग्रहीत मिथ्यात्व | कितने ही संज्ञी पंचेंद्रिय जीवोंको चढ़े हुये भूतके समान उ
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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