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________________ - सागारधर्मामृत सकते हैं और इसलिये ही जो स्त्री धन धान्य आदि विषयों में 'मूर्छित हैं अर्थात् जो समझते हैं कि ये स्त्री धन धान्य आदि सव. मेरे हैं, मैं इनका स्वामी हूं, इस प्रकारके ममत्वके जो आधीन हैं, उन्हें सागार अर्थात् गृहस्थ कहते हैं। इस श्लोकमें जो प्रायः शब्द है उससे ग्रंथकारने गृहस्थोंके विषयोंमें मूर्छित होनेका विकल्प दिखलाया है, अर्थात् कितने ही सम्यग्दृष्टि पुरुष चारित्रमोहनीयकर्मके उदयसे विषयोंमें मूर्छित | हो जाते हैं परंतु जिन्होंने पहिले जन्मोंमें रत्नत्रयका अभ्यास किया है उस रत्नत्रयके प्रभावसे यद्यपि बड़ी भारी राज्यलक्ष्मीका उपभोग करते हैं तथापि तत्त्वज्ञानके साथ२ देशसंयमको धारण करते हुये उदासीन रूपसे उन विषयों का सेवन करते हैं। इसलिये जिस प्रकार जिसकी स्त्री व्यभिचारिणी है वह पुरुष उसका त्याग भी नहीं कर सकता परंतु उदासीन होकर उपभोग करता है उसी प्रकार वे सेवन करते हुये भी सेवन न करनेवालोंके ही समान हैं । इससे यह सिद्ध हुआ कि कोई सम्यग्दृष्टि तो विषयों में • १ मार्छतका लक्षण वपुहं धनं दाराः पुत्रमित्राणि शत्रवः । सर्वथान्य स्वभावानि मूढः स्वानि प्रपद्यते ॥१॥ अर्थ-देह, घर, धन, स्त्री, पुत्र, मित्र, और शत्रु आदि जिनका स्वभाव आत्मासे सर्वथा भिन्न है उन्हें अपना माननेवाला मार्छत कहलाता है ॥१॥ POST
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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