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________________ सागारधर्मामृत . राज्यमें भेजदेना अथवा दूसरे राज्यके किसी मनुष्यको अपने राज्यमें बुला लेना। यद्यपि एक राज्यसे दूसरे राज्यमें जानेमें कोई दोष नहीं है परंतु वह राजाकी आज्ञानुसार नहीं गया है। लोकमें इसप्रकार स्वामीकी आज्ञाके विना विरुद्धवाले राज्यमें जानेवाले लोगोंको चोरी करने का ही दंड दिया जाता है क्योंकि स्वामीकी आज्ञा विना नियमित कामसे बाहर काम करना चोरी गिनी जाती है । इसलिये परस्पर द्वेष रखनेवाले राज्यों में से विना राजाकी आज्ञाके एक दुसरेके राज्य में जाना अथवा छत्रभंग आदि होनेवाले विरुद्ध राज्यमें कीमती पदार्थ कम कीमतमें लेना वा कम कीमती अधिक कीमतमें बेचना आदि कामोंसे अचौर्यव्रतका भंग होता है परंतु एक राज्यसे दूसरे राज्यमें जानेवाला समझता है कि मैंने कुछ चोरी नहीं की है मैं केवल व्यापार करने के लिये यहां आया हूं चोरीके लिये नहीं, इसप्रकार वह अपने व्रतोंकी रक्षा करने में भी तत्पर रहता है । तथा कीमती वस्तुको कम कीमतमें लेनेवाला वा कम कीमती वस्तुको अधिक कीमतमें बेचनेवाला भी समझता है कि मैं यह व्यापार करता हूं चोरी नहीं, इसप्रकार उसके परिणामोंसे व्रतोंकी रक्षा भी होती है तथा ऐसे काम करनेवालोंको संसारमें भी कोई चोर नहीं कहता इसलिये उसके अंतरंग व्रतोंका भंग नहीं होता। इसप्रकार अचौर्यव्रतका भंग और अभंग होनेसे विरुद्धराज्यातिक्रम भी अतिचार ही गिना जाता है। WHATSA M SUSILAGHAASHASABAISIPORADABAD
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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