SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 331
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ namara. सागारधर्मामृत [ २८१ ( छिपकर ) थोडेसे मूल्यमें ले लिया जाता है अथवा तरजूमें पासंगकर अधिक ले लिया जाता है, इसलिये लेनेवाला चोर गिना जाता है और इसतरह उसके बाह्यव्रतका भंग हो जाता है। परंतु लेनेवाला यह ही समझता है कि मैं यह व्यापार करता हूं, चोरी नही, इसप्रकार उसके अंतरंग व्रतका भंग नहीं होता । इसतरह चोराहृतग्रहमें व्रतका भंग और अभंग | दोनों होनेसे वह अतिचार गिना जाता है। ____ अधिकहीनमानतुला--सेर पायली गज हाथ आदि मापनेको मान कहते हैं और तोलनेको उन्मान वा तुला कहते हैं । कोई पदार्थ दूसरेको देते समय छोटे मापसे नापना अथवा हलके बजनसे तौलना और लेतेसमय बडे मापसे नापकर लेना वा भारी बजनसे तौलकर लेना अधिक हीनयानतुला कहलाता है यह भी भंगाभंगस्वरूप होनेसे अतिचार होता है। प्रतिरूपक व्यवहृति--किसी अधिक कीमती वस्तुमें उसीके सदृश कम कीमती कोई अन्य पदार्थ मिलाकर बेचना या व्यवहार करना प्रतिरूपकव्यवहृति कहलाती है । जैसे चांवलोंमें पलंजि, घीमें चर्वी वा तेल, हींगमें गोंद, तेलमें मूत्र, असली सोना चांदीमें नकली सोना चांदी आदि मिलाकर असलीके भावसे बेचना प्रतिरूपकव्यवहृति है अधिकहीनमान
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy