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________________ सागारधर्मामृत [ २०५| अर्थ-स्त्रियों का अनादर करना ही पतिके लिये परम विरागता अथवा परम विरोधका कारण हो जाता है पतिकी कुरूपता अथवा दरिद्रतासे स्त्रियां कभी विरोध नहीं करती हैं अथवा पतिको कष्ट नहीं पहुंचाती हैं । इसलिये इस लोक और परलोकमें सुख और सुखके कारणोंकी अभिलाषा करनेवाले पुरुषको स्त्रीकी अवज्ञा अथवा धर्मकार्योंके समय उसकी उपेक्षा कभी नहीं करनी चाहिये । भावार्थ- पति चाहे कुरूप हो या दरिद्र हो उसपर स्त्रीका स्वाभाविक प्रेम होता ही है यदि पति उसकी अवज्ञा करता है या धर्मकार्यों में उसे वंचित रखता है, वा उपेक्षा करता है तब परस्पर वैमनस्य होना संभव हो जाता है । इसलिये स्त्रीकी अवज्ञा करना या धर्मकार्योंसे उसे अलग रखना सर्वथा अनुचित है ॥ २७॥ आगे-धर्म सुख आदिकी इच्छा करनेवाली कुलस्त्रियोंको सदा पतिके अनुसार ही चलना चाहिये ऐसी प्रकरणके अनुसार स्त्रियोंको शिक्षा देते हुये कहते हैं नित्यं भर्तृमनीभूय वर्तितव्यं कुलस्त्रिया। धर्मश्रीशर्मकीत्येककेतनं हि पतिव्रताः ॥ २८ ॥ अर्थ-कुलस्त्रीको मन वचन कायसे सदा पतिके चित्तके अनुसार ही चलना चाहिये अर्थात् पतिके चित्तके अनुकूल ही चितवन करना चाहिये, अनुकूल ही कहना चाहिये और HAAN main
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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