________________
(१२) है। परन्तु उसके देखनेका हमको अभीतक सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ।
मदनकीर्तिके सिवाय आशाधरके अनेक शिष्य थे। व्याकरण, काव्य, न्याय, धर्मशास्त्र आदि विषयोंमें उनकी असाधारण गति थी । इन सब विषयोंमें उन्होंने सैकडों शिष्योंको निष्णात कर दिया था। देखिये, वे क्या कहते हैं:
यो द्राग्व्याकरणाब्धिपारमनयच्छुश्रूषमाणान्नकान् षटतर्कीपरमास्त्रमाप्य न यतः प्रत्यर्थिनः केऽक्षिपन् । चेरुः केऽस्खलितं न ये न जिनवाग्दीपं पथि ग्राहिताः पीत्वा काव्यसुधां यतश्च रसिकेष्वापुः प्रतिष्ठां न के ॥ ९ ॥
भावार्थ-शुश्रूषा करनेवाले शिष्योंमेंसे ऐसे लौन हैं, जिन्हें आशाधरने व्याकरणरूपी समुद्र के पार शीघ्र ही न पहुंचा दिया हो तथा ऐसे कौन हैं, जिन्होंने आशाधरसे षट्दर्शनरूपी परम शस्त्रको लेकर अपने प्रतिवादियोंको न जीता हो तथा ऐसे कौन हैं, जो आशाधरसे निर्मल जिनवचनरूपी (धर्मशास्त्र) दीपक ग्रहण करके मोक्षमार्गमें प्रवृत्त नहीं हुए हों, अर्थात् मुनि न हुए हों और ऐसे कौन शिष्य हैं, जिन्होंने आशाधरसे काव्यामृतका पान करके रसिक पुरुषों में प्रतिष्ठा नहीं पाई हो।
___ इस श्लोककी टीकामें पंडितवर्यने प्रत्येक विषयके पार पहुंचे हुए अपने एक २ दो २ शिष्योंका नाम भी दे दिया है। | पंडित देवचंद्रादिको उन्होंने व्याकरणज्ञ बनाया था, वादीन्द्र |