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सागारधर्मामृत
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श्रावकको नैष्ठिक कहते हैं । भावार्थ -- अप्रत्यारव्यानावरण कषायके क्षयोपशमके अनुसार जो ग्यारह प्रतिमाओंमेंसे किसी
क्रोधी मानी मायी लोभी, रागी द्वेषी मोही शोकी । हिंस्रः क्रूरश्चंडश्वरो मूर्ख स्तब्धः सर्धाकारी || निद्रालुः कामुको मंदः कृत्याकृत्याविचारकः । महामूच्छ महारंभो नीललेश्यो निगद्यते ॥ अर्थ - जो जीव क्रोधी, मानी, मायावी, लोभी, रागी, द्वेषी, मोही, शोकी, हिंसक, क्रूर, भयंकर, चोर, मूर्ख, सुस्त, इर्षा करनेवाला, बहुत सोनेअधिक वाला, कामी, जड़, कृत्य अकृत्यका विचार न करनेवाला, परिग्रह रखनेवाला और अधिक आरंभ करनेवाला है उसके नील लेश्या समझना चाहिये ।
शोकभी मत्सरासूया परनिंदापरायणः । प्रशंसति सदात्मानं स्तूयमान: प्रहृष्यति ॥ वृद्धिहानी न जानाति न मूढः स्वपरांतरं । अहंकारग्रहग्रस्तः समस्तां कुरुते क्रियां ॥ श्लाघितो नितरां दत्ते रणे मर्तुमपीते । परकीययशोध्वंसी युक्तः कापोतलेश्यया || अर्थ - शोक, भय, मत्सरता, असूया, परनिंदा आदि करनेमें तत्पर, सदा अपनी प्रशंसा करनेवाला, दूसरे के मुखसे अपनी प्रशंसा सुनकर हर्ष माननेवाला, हानि लाभको नै जाननेवाला, अपने और दूसरेके अंतरको न देखनेवाला, अहंकाररूपी ग्रहसे घिरा हुआ, इच्छानुसार सव क्रियाओंकों करनेवाला, प्रशंसा करनेपर सदा देनेवाला, युद्धमें मरनेतककी इच्छा करनेवाला और दूसरेके यशको नाश करनेवाला जो मनुष्य है उसके कापोती लेय्या समझना चाहिये ।
समदृष्टिरविद्वेषो हिताहितविवेचकः
वदान्यः सदयो दक्षः पतिलेश्यो महामनाः॥ अर्थ - सबको समान देखनेवाला (पक्षपातरहित),