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________________ AMANA सागारधर्मामृत [१४९ सहित है। उसे कुपात्र कहते हैं 'कुपात्रको दान देनेवाला मिथ्यादृष्टि मरकर कुभोगमूमिमें उत्पन्न होता है । वहां एक पल्यकी आयु होती है, रहने के लिये अच्छी अच्छी गुफायें दरी और वृक्ष हैं, खानेके लिये स्वादिष्ट मिट्टि और फल पुष्प मिलते है उन कुभोगभूमियोंमें जन्म लेनेवालोंमेंसे किसीके एक पैर होता है किसीके लंबे कान होते हैं। कोई कोई अश्वमुख गोमुख व्याघ्रमुख सींगवाले आदि अडतालीस कुभोगभूमियों में अलग अलग जातिके जीव निवास करते हैं वे जीव अपने समान ऐसी स्त्रीके साथ निरंतर भोगोपमोगोंका सेवन करते हुये आयु पूर्ण होनेपर बचे हुये पुण्यसे स्वर्गमें बाहनदेव, ज्योतिषी, व्यंतर, भवनवासी आदि नीच १-मिथ्यात्वग्रस्तचित्तेषु चारित्राभासभागिषु । दोषायैव भवेद्दानं पयःपानमिवाहिषु ॥ अर्थ-चारित्राभासको धारण करनेवाले मिथ्यादृष्टियोंको दान देना सर्पको दूध पिलानेके समान केवल अशुभके लिये ही होता है । तथापि कारुण्यादथवौचित्यात्तेषां किंचिद्दिशन्नपि । दिशेदुद्धतमेवान्नं गृहे भुक्तिं न कारयेत् ॥ अर्थ-जो कदाचित् करुणाबुद्धिसे अथवा और किसी उचित संबंधसे किसीको कुछ देना हो तो अन्नादिक ही उठाकर दे देना चाहिये, उसे अपने घर भोजन कराना उचित नहीं। सत्कारादि विधावेषां दर्शनं दूषितं भवेत् । यथा विशुद्धमप्यंबु विषभाजनसंगमात् ॥ अर्थ-जिसप्रकार अत्यंत शुद्ध जल भी विषके पात्रमें रखनेसे दूषित हो जाता है उसीप्रकार इन कुपात्रोंके सत्कारादि करने में भी सम्यग्दर्शनमें दोष लगता है।
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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