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________________ wwwwwwwwww सागारधर्मामृत [ १२९ कालमें सम्यग्दर्शनगुणके प्राप्त होनेकी योग्यता है ऐसा जैन बडे पुण्यवानोंको प्राप्त होता है और भावनैन अर्थात् जिसमें उसीसमय जैनत्वगुण अर्थात् सम्यग्दर्शन विद्यमान हो ऐसा जैन बड़े महात्माओंको अथवा महाभाग अर्थात् बडे भाग्यवान लोगोंको प्राप्त होता है । अभिप्राय यह है कि अजैनोंकी अपेक्षा नामका जैनी तथा स्थापना किया हुआ जैनी भी अच्छा है । द्रव्यजैनी भाग्यवानोंको ही मिलता है अर्थात् दुर्लभ है और भावजैनी और भी दुर्लभ है ॥ ५४ ॥ ___आगे-भावजैनपर कपटरहित प्रेम करनेवालेको उसका फलस्वरूप स्वर्ग और मोक्षकी संपत्ति प्राप्त होती है ऐसा दिखलाते हैं प्रतीतजैनत्वगुणेऽनुरज्यन्निर्व्याजमासंसृति तद्गुणानां । धुरि स्फुरन्नभ्युदयैरहप्तस्तृप्तस्त्रिलोकीतिलकत्वमेति ॥५५॥ ____ अर्थ-जिसका जैनत्व गुण प्रसिद्ध है अर्थात् जिसके वास्तवमें सम्यग्दर्शन विद्यमान हैं ऐसे भव्यपात्र पुरुषपर जो गृहस्थ कपट रहित स्वयं प्रेम करता है वह पुरुष मोक्ष प्राप्त होनेतक प्रत्येक जन्ममें वास्तवमें सम्यग्दर्शन गुणको धारण | करनेवाले लोगोंके सामने भी अधिक तेजस्वी होता है। तथा सम्यग्दर्शनके साथ रहनेवाले पुण्यकर्मके उदयसे किसी तरहका १ जिनके सम्यग्दर्शन नहीं है परंतु जो रूढि या कुलपरंपरासे जैनधर्म पालन करते हैं वे नामजैन वा स्थापनाजैन कहला सकते हैं ।
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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