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________________ सागारधर्मामृत [ ९३ धर्मसाधन करने की सामग्री मिलने पर श्रावकधर्मको १ पालन कर सकता है | श्रावकके मूलगुण तथा अणुव्रत आदि सर्वसाधारण हैं इन्हें हरकोई पालन कर सकता है 1 इसप्रकार अहिंसा पालन करना, सत्य भाषण करना, अचौर्यव्रत पालना, इच्छाका परिमाण कर लेना और वेश्यां आदि निषिद्ध स्त्रियोंमें ब्रह्मचर्य धारण करना अर्थात् उनका त्याग करना ये सर्व साधारण धर्म हैं इन्हें हरकोई धारण कर सकता है यह बात कह चुके ॥ २२ ॥ १ - इससे यह भी समझ लेना चाहिये कि शूद्रोंको ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्योंके समान केवल श्रावकधर्मके पालन करनेका तथा जैनधर्मके सुनेका अधिकार दिया है । ब्राह्मणादिके समान उनके संस्कार नहीं होते हैं इसलिये उनके और द्विजोंके साथ पंक्ति भोजन तथा कन्यादान आदिका व्यवहार नहीं होता । प्रत्येक धर्म साधारण हैं उन्हें प्रत्येक जीव धारण कर सकता है चाहे वह ब्राह्मण हो चाहे चांडाल और चाहे पशुपक्षी हो । पंक्तिभोजन और कन्यादान आदिका संबंध जातिके साथ है। धर्मशास्त्र के अनुसार जिन जिन जातियोंका जिन जिन जातियोंके साथ पंक्तिभोजन आदिका व्यवहार कहा है उन्हीं के साथ हो सकता है अन्यके साथ नहीं, क्योंकि वह सर्वसाधारण नहीं है । पंक्तिभोजनादिका 1 संबंध जातिके साथ है धर्मके साथ उसका कोई संबंध नहीं है तथा धर्मको भी जातिके साथ कोई संबंध नहीं है । जिस वैष्णवधर्मको ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य पालन करते है उसीको चांडाल भी पालता है परंतु चांडालके साथ ब्राह्मणादिका पंक्तिभोजन वा कन्यादानका व्य
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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