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________________ दूसरा अध्याय स्कार ये तीन दीक्षायें ग्रहण की गई हैं । इन तीनोंमेंसे वह कुल किसी दीक्षाके योग्य हो । जो पुरुष मिथ्यात्वके साथ साथ होनेवाले पुण्यफर्मके उदयसे मिथ्यादृष्टियोंके ऐसे कुलमें जन्म लेकर आगे कहे हुये तत्त्वोंका श्रद्धान करना आदि गुणोंसे अपने आत्माको पवित्र करते हैं वे भी जैनकुलमें उत्पन्न होनेवालोंके समान ही हो जाते हैं। ग्रंथकारने ऐसे लोगों के लिये अपि शब्दसे आश्चर्य प्रगट किया है अर्थात् यह भी एक आश्चर्य है कि मिथ्यादृष्टियोंके कुलमें उत्पन्न होनेवाले भी तत्वार्थश्रद्धान आदि गुणोंको धारण कर जैनकुल में उत्पन्न होनेवाले पुण्यवान सम्यग्दृष्टियों के समान गिने जाते हैं। अभिप्राय यह है कि भव्य दो प्रकारके हैं-एक तो वे कि जो जैनकुलमें जन्म लेकर पूर्व जन्मके संस्कारसे स्वभावसे ही धर्मात्मा हैं, और दूसरे वे कि जो मिथ्यादृष्टियोंके कुलमें जन्म | लेकर जैनधर्म धारणकर धर्मात्मा हुये हैं ॥ २० ॥ आगे-ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य इन द्विजातियों में से कुलक्रमसे आये हुये मिथ्याधर्मको छोडकर और विधिपूर्वक जैनधर्मको धारण कर जो स्वाध्याय ध्यान आदिके निमित्तसे अशुभ कर्मोंका नाश करता है उस भव्य पुरुषकी प्रशंसा करते हैं तत्त्वार्थ प्रतिपद्य तीर्थकथनादासाद्य देशव्रतं तद्दीक्षाप्रधृतापराजितमहामंत्रोऽस्तदुर्दैवतः । आंगं पौर्वमथार्थसंग्रहमधीत्याधीतशास्त्रांतरः पर्वाते प्रतिमासमाधिमुपयन् धन्यो निहंत्यंहसी॥२१॥ ANTHATION
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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