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________________ सागारधर्मामृत [ ८३ क्षत्रिय वैश्यको ही जैनधर्मके सुननेका अधिकार है ऐसा प्रगट कर दिखलाते हैं यावज्जीवमिति त्यक्त्वा महापापानि शुद्धधीः । जिनधर्मश्रुतेर्योग्यः स्यात्कृतोपनयो द्विजः ।। १९ ।। 99 अर्थ — ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य ये तीनों वर्ण द्विज कहलाते हैं क्योंकि शास्त्रों में लिखा है " त्रयोवर्णा द्विजातयः अर्थात् तीनों वर्ण द्विज हैं । जो दो बार जन्म ले उसे द्विज कहते हैं । ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य ये प्रथम तो माता के गर्भ से जन्म लेते हैं और फिर इनका दूसरा जन्म जैन शास्त्रों में कहे हुये यज्ञोपवीत आदि संस्कारों से होता है । ये संस्कार अथवा इन संस्कारीद्वारा जन्म सम्यग्ज्ञानादि बढानेके लिये ही होता है । इन दो प्रकारके जन्म लेनेसे ही ये द्विज कहलाते है । जो पुरुष इन तीनों वर्णोंमेंसे किसी वर्णका हो और जिसने विधिपूर्वक मौंजीबंधन सहित यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण किया हो उसकी बुद्धि यदि सम्यग्दर्शनसे विशुद्ध हो गई हो अर्थात् उसके सम्यग्दर्शन हो और वह अनंत संसारको बढानेवाले मद्य मांस आदि पहिले कहे हुवे महापापोंको जन्मभर के लिये उपर लिखे अनुसार त्याग कर दे अर्थात् वह यदि सम्यग्दर्शनपूर्वक आठ मूलगुण धारण करले तब वह पुरुष वीतराग कहुये उपासकाध्ययन ( श्रावकाचार ) आदि सर्वज्ञदेव के धर्मशास्त्रों के
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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