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________________ सागारधर्मामृत सागारघमामृत [७५ ___ आगे-पांचों उदंबर फलोंके खानेमें भी द्रव्यहिंसा और | भावहिंसाका दोष लगता है इसीको प्रतिपादन करते हैं पिप्पलोदुंबरप्लक्षवटफलगुफलान्यदन् । हत्यार्दाणि त्रसान् शुष्काण्यपि स्वं रागयोगतः ॥१३॥ अर्थ-पीपल, ऊमर (गूलर ), पाकर, बड़ और कठूमर ( काले गूलर अथवा अंजीर ) इन पांचों वृक्षोंके हरे फल खानेवाला जीव सूक्ष्म और स्थूल दोनों तरह के त्रस जीवोंकी हिंसा करता है क्योंकि इन फलोंमें अनेक सूक्ष्म स्थूल जीव इस विषयमें अन्य आचार्योंका ऐसा भी मत है अंतर्मुहूर्तात्परतः सुसूक्ष्मा जंतुराशयः । यत्र मूर्च्छति नाद्यं तन्नवनीतं विवेकिभिः ॥ अर्थ- मक्खन वा लौनीमें अंतमुहूर्त के पीछे अनेक सूक्ष्म जीव उत्पन्न हो जाते हैं इसलिये वह विवेकी पुरुषोंको नहीं खाना चाहिये। २-अश्वत्थोदुंबरप्लक्षन्यग्रोधादिफलेष्वपि । प्रत्यक्षाः प्राणिनः स्थूलाः सूक्ष्माश्चागमगोचराः ॥ अर्थ-उदंबर आदि पांचों फलोंमें स्थूलजीव कितने भरे हुये हैं वे तो प्रत्यक्ष ही देख पडते हैं परंतु उनमें सूक्ष्म भी अनेक जीव हैं जो कि देख नहीं पडते केवल शास्त्रोंसे जाने जाते हैं। ३-ससंख्यजीवव्यपघातवृत्तिभिर्न धीवरैरस्ति समं समानता । अनंतजीवव्यपरोपकाणामुदुंबराहारविलोलचेतसां ॥ अर्थ--धीवर लोग नदी आदिमें जाल डालकर मछलीयां मारते हैं परंतु उन मरे हुये जीवोंकी संख्या होती है और उदुंबर खानेमें मरनेवालोंकी संख्या ही नहीं है अनंत जीव मर जाते हैं इसलिये इसमें भी अधिक पाप है।।
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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