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प्रशमरति प्रकरण का समालोचनात्मक अध्ययन
62 लोगों की चापलूसी करके जो उनका प्रेम प्राप्त किया जाता है, वह मिथ्या, क्षणिक एवं अत्यंत कष्टप्रद होता है, क्योंकि क्षण भर में राग रंजिस में बदल जाता है। अत: यह भी हेय है 40 । श्रुत-मद :
श्रुत ज्ञान प्राप्ति का गर्व करना, श्रुत-मद है। इसका पालन करने वाला मनुष्य अज्ञानी होता है, जैसे श्रुतमद पालन करने वाला मुनि स्थूलभद्र । स्थूलभद्र के श्रुत मद के कारण श्रुत-सम्प्रदाय का विच्छेद हो गया। अतः श्रुतमद हानिकारक है 41 । इस प्रकार आठ मद के कारणभूत मान कषाय पर विजय प्राप्त करना मार्दव धर्म है। इस धर्म का पालन करने वाला मुनि सर्वगुण सम्पन्न हो जाता है। अतः मुनि के लिए मान विजयी मार्दव-धर्म आचरणीय है। आर्जव धर्म :
__ आर्जव का अर्थ सरलता है। मन, वचन और काय इन तीनों योगों की सरलता का होना आर्जव धर्म है। माया कषाय का अभाव होने पर ही इसकी प्राप्ति होती है 43 । __ आर्जव धर्म के बिना शुद्धि नहीं होती। अशुद्ध आत्मा धर्म की आराधना नहीं कर सकता है। धर्म के बिना मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती तथा मोक्ष प्राप्त किये बिना अविनश्वर सुख की प्राप्ति संभव नहीं है और मोक्ष से बढ़कर दूसरा कोई सुख नहीं है। अतः साधु को आलोचना आदि करते समय सदैव आर्जव धर्म पालना करना अनिवार्य है ।
शौच-धर्म : ____ यह भी एक महत्वपूर्ण धर्म है। प्रशमरति प्रकरण में पवित्रता को शौच कहा गया है45 । शौच धर्म के दो प्रकार हैं।6 - द्रव्य शौच और भाव शौच।
द्रव्य शौच धर्म :
द्रव्य शौच बाह्य शौच है। यहाँ शौच का अर्थ शुद्धि है। जो द्रव्य उपकरण खान-पान और शरीर को लेकर शुद्धि किया जाता है, वह द्रव्य शौच धर्म है। ज्ञानादि में जो सहायक हो, उसे उपकरण कहते हैं। जो उपकरण उद्गम आदि दोषों से शुद्ध होता है, वह पवित्र होता है और जो वैसा नहीं होता है, वह अपवित्र है। इसी तरह मल-मूत्र का त्याग करने के बाद लेप और ग्रन्थ से रहित देह पवित्र होता है। ये सब शुद्धि द्रव्य शौच है।
भाव शौच धर्म :
निर्लोभता को भाव-शौच कहा गया है। जिसकी आत्मा लोभ कषाय से रंजित है, उसकी शुद्धि होना कठिन है। इस प्रकार लोभ का त्याग ही यथार्थ में भाव शौच है।