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प्रथम अध्याय आचार के पालन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस प्रकार इस ग्रन्थ में मोक्ष स्वरुप का कथन कर जन्म-मरण के चक्कर से सदा के लिए मुक्त होने का उपाय बतलाया गया है।
इस वैराग्य विषयक ग्रन्थ के अंत में प्रशमरति के फल का कथन कर बतलाया है कि प्रशम में रति होने के कारण गृहस्थ तथा संयम के अनुष्ठाता संयमी मुनि क्रमशः स्वर्ग एवं मोक्षफल की प्राप्त करते हैं 60। इसलिए समस्त सुखों का मूल बीज, सकल अर्थों के निर्णायक तथा सब गुणों की सिद्धि के लिए धन की तरह साधन स्वरुप जिनशासन में भक्ति भाव पूर्वक साधना कर शाश्वत, चिरन्तन, अनुपम, अव्यशबाथ एवं अनन्त प्रशम सुख की प्राप्ति के लिए संयमी सज्जनों को प्रयत्न करने का आग्रह किया गया है 61 । इस प्रकार उक्त विश्लेषण से प्रशमरति प्रकरण शीर्षक नाम की सार्थकता स्वतः सिद्ध होती है। उपर्युक्त वैराग्य विषयक जिन ग्रन्थों का उल्लेख किया गया है, उनमें प्रशमरति प्रकरण उत्कृष्ट कोटि का ग्रन्थ कहा जा सकता है क्योंकि इसमें अध्यात्म संबंधी सूक्ष्म विषय का प्रतिपादन किया गया है। इसके अध्येता और श्रोता दोनों ही शीघ्र संसार से विरक्त होने की भावना करने लगते हैं। इस प्रकार यह वैराग्य विषयक ग्रन्थों में विशिष्ट स्थान रखता है। इसके समान अध्यात्म विषयक अन्य दूसरा कोई भी ग्रन्थ इस कोटि का नहीं है। इसलिए वैराग्य मूलकग्रन्थों में प्रशमरति प्रकरण का विशेष महत्व है।