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प्रथम अध्याय स्वाति ही तत्वार्थसूत्र के प्रणेता उमास्वाति है। परन्तु, यह मान्यता प्रमाणित नहीं हो सकी
है। 11
दीक्षा एवं विधागुरु : ___ इनके दीक्षा गुरु एवं विद्या गुरु कौन हैं, इस सम्बन्ध में श्वेताम्बर और दिगम्बर विद्वानों ने अलग-अलग मत व्यक्त किये हैं। दिगम्बर विद्वानों के अनुसार इनके गुरु का नाम कुन्दकुन्दाचार्य है। इन्होने अपने इस कथन की पुष्टि के लिए श्रवणवेलगोल शिलालेख संख्या209 को प्रमाण के रुप में प्रस्तुत किया है। इसके अतिरिक्त शुभचंद्राचार्य ने भी उमास्वाति को आचार्य कुन्दकुन्द का ही शिष्य माना है। 12 दिगम्बर विद्वानों ने अपने कथन की पुष्टि में यह भी कहा है कि गृद्ध पिच्छाचार्य उमास्वाति ने कुन्दकुन्दाचार्य का शाब्दिक और वस्तुगत अनुसरण किया है, अतः सिद्ध है कि उमास्वाति कुन्दकुन्द के अन्वय में हुए हैं और वे कुन्दकुन्दाचार्य के शिष्य हैं। .
श्वेताम्बर मान्यता प्राप्त तत्वार्थसूत्र की प्रशस्ति के अनुसार उमास्वाति के दीक्षा गुरु ग्यारह अंग के धारक घोषनन्दी श्रमण हैं और प्रगुरुवाचक मुख्य शिवश्री हैं। इनके विद्या-गुरु मूल नामक वाचकाचार्य और प्रगुरु महावाचक मुण्डपाद हैं। पंडित संघवी ने इसे ही प्रमाणिक माना है और दिगम्बर विद्वानों के मतों के प्रति अपनी असहमति व्यक्त की है। 13
डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री ने संघवी के मत जो तत्वार्थसूत्र की प्रशस्ति पर आधारित है, की समीक्षा अपने तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग 2 में की है। इन्होंने बतलाया है कि पण्डित सुखलाल संघवी का अभिमत गुरु-शिष्य परम्परा तत्वार्थाधिगम भाष्यकार वाचक उमास्वाति की है, तत्वार्थसूत्र के रचयिता गृखपृच्छ उमास्वामी की नहीं हैं।
उपर्युक्त विवेचनों से स्पष्ट है कि उमास्वाति की गुरु परम्परा के संबंध में विद्वान् एकमत नहीं हैं। फिर भी श्वेताम्बर मान्यता प्राप्त तत्वार्थसूत्र की प्रशस्ति जो भाष्य के अन्त में उपलब्ध होती है। वह यदि वास्तव में तत्वार्थसूत्रकार की ही रची हुई है,जैसा कि डॉ हर्मन जैकोबी ने भी इस प्रशस्ति को उमास्वाति की ही रचना माना है,14 तो श्वेताम्बर मान्यता ही तर्कसंगत प्रतीत होती है। काल - निर्धारण :
उमास्वाति का काल-निर्धारण भी अत्यधिक विवादास्पद विषय है, क्योंकि उमास्वाति ने स्वयं अपने समय का उल्लेख भी जन्म - स्थानादि की ही तरह नहीं किया है। दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्पराएँ विभिन्न आधार मानकर इनका समय निर्धारण करती है। दिगम्बर मान्यता:
(1) इनका समय नन्दिसंघ की पट्टावली के अनुसार वीर निर्वाण संवत् 571 है, जो कि