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(पष्टम अव्याय)
उपसंहार
पूर्व के अध्यायों में मैंने वाचक उमास्वाति का परिचय देने तथा उनके प्रशमरति प्रकरण की विभिन्न विशेषताओं का अध्ययन करने का यत्किचित प्रयत्न किया है। अब यहाँ मैं उपलब्ध प्रमुख तथ्यों के समेकित सार रुप को उपसंहार के रुप में निम्न प्रकार प्रस्तुत कर रही हूँ :
प्रशमरति प्रकरण जैसा कि इसके नाम से ही सिद्ध होता है कि यह संस्कृत भाषा में निबद्ध वैराग्य विषयक ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ के लेखक के सम्बन्ध में विद्वान् एकमत नहीं हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि इसके लेखक आचार्य उमास्वाति हैं, जबकि अन्य इससे सहमत नहीं हैं। वास्तव में इसके लेखक कौन हैं? यह एक गम्भीर अनुसंधान का विषय है। इतना तो स्पष्ट है कि प्रशमरति प्रकरण के टीका का आचार्य हरिभद्र हैं। परन्तु इन्होंने अपनी टीका में ऐसा उल्लेख नहीं किया है कि आचार्य उमास्वाति विरचित प्रशमरति प्रकरण के ही वे टीकाकार हैं। इसके अतिरिक्त अन्य जो भी टीकाएँ और अवचूरियाँ लिखी गईं हैं, उनमें से केवल एक अवचूरि प्राप्त हुई है जिसमें प्रशमरति प्रकरण के रचयिता के रुप में वाचक उमास्वाति का उल्लेख किया गया है।
प्रशमरति प्रकरण के रचयिता वाचक उमास्वाति हैं, इसके सम्बन्ध में जैन दर्शन के मूर्धण्य विद्वानों पं० नाथूराम प्रेमी, आचार्य सिद्धसेन, पं० सुखलाल संघवी, पं० कैलाश चन्द्र शास्त्री आदि ने अपने ग्रन्थों में विशद विवेचन किया है।
मैं भी उक्त विद्वानों के मत से सहमत हूँ। परन्तु मेरी दृष्टि में प्रशमरति प्रकरण के कर्ता तत्वार्थ सूत्रकार से भिन्न कोई दूसरे ही उमास्वाति हैं। अतः निर्विवादतः यह सिद्ध है कि वाचक उमास्वाति ही प्रशमरति प्रकरण के कर्ता हैं।
जैन दार्शनिकों ने वैराग्य विषयक अनेक ग्रन्थों का सृजन किया है। आचार्य कुन्दकुन्द ने प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियमसार और समयसार जैसे वैराग्य विषयक ग्रन्थों की संरचना