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________________ ३४ ___ अयोगव्यवच्छेदः नही आता है तथा भगवंत अष्टादश दूषणरहित होनेसें नि:स्पृह और सर्वज्ञ है, तिनकी मुद्रा ऐसीही होनी चाहिये; परंतु परतीर्थनाथोंने तो भगवंतकी मुद्राभी नही सीखी है; अन्यभगवंतके गुणोंका धारण करना तो दूर रहा, परतीर्थ नाथोंने तो भगवंतकी मुद्रासें विपरीतही मुद्रा धारण करी है; क्यों कि, जैसी देवोंकी मुद्रा थी, वैसीही मुद्रा तिनकी प्रतिमाद्वारा सिद्ध होती है । शिवजीने तो पांच मस्तक जटाजूटसहित, और शिरमें गंगाकी मूर्ति और नागफण, गलेमें रुंड (मनुष्योंके शिर) की माला, और सर्प, हाथ दश, प्रथम दाहने हाथमें डमरु, दूसरेमें त्रिशूल, तीसरें से ब्रह्माजीको आशीर्वादका देना, चौथेमें पुस्तक, और पांचवेमें जपमाला; वामे प्रथम हाथमें गंध सूंघनेकों कमल, दूसरेंमें शंख, तीसरे हाथसें विष्णुकों आशीर्वादका देना, चौथेमें शास्त्र, और पांचमें हाथसें दाहनेपगका पकडना, ऐसी मूर्ति धारण करी है। तथा अन्यरूपमें शिवजीने पार्वतीकों अर्धांगमें धारण करी है, और अपने हाथसें लपेट रहे है। तथा शिवजीके दाहनेपासे ब्रह्माजी हाथ जोडकरके खडे हैं, और वामेपासे विष्णु हाथ जोडके खडे हैं। विष्णुकी और ब्रह्माजीकी मुद्रा तो प्रायः चित्रोंमें प्रसिद्धही है। शंक, चक्र, गदादिशस्त्र, और श्री (लक्ष्मी) जी सहित तो विष्णुकी; और चारमुख, कमंडलु जपमाला वेद पुस्तकादि चारों हाथोंमें धारण करे, ऐसी मुद्रा ब्रह्माजीकी है। परंतु योगीनाथ अरिहंतकी मुद्रा तो, किसीनेभी धारण नही करी है ॥ २० ॥ . अथाग्रे स्तुतिकार भगवंतके शासनकी स्तुति करते हैंयदीयसम्यक्त्वबलात् प्रतीमो भवादृशानां परमस्वभावम् ।
SR No.022359
Book TitleAyogvyavacched Dwatrinshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypradyumnasuri
PublisherShrutgyan Prasarak Sabha
Publication Year
Total Pages50
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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