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________________ १ जीवने स्वकर्मजन्य फलानुभव योग्य कया कया स्थानको छ ? ए जणाववा माटे प्रस्तुत प्रकरणने दंडक पदथी ओळखावेल छे. २ आ दंडकोर्नु मुख्यत्वे करी आपणा परमपूज्यतम पश्चमांग श्री व्याख्याप्राप्ति ( श्री भगवती ) सूत्र तथा चतुर्थोपांग श्री प्रज्ञापना सूत्रमा सविस्तर वर्णन करेल छे. जेथी अहीं संज्ञाकमादि पण प्रायः तदनुसारेज राखेल छे. ३ तेओन सार्वजनिक अध्ययन नहि होवामां बे प्रयोजनो छे. जे १ मूल प्राकृतभाषानो अपरिचय तथा वृत्तिग्रन्थोनी संस्कृत भाषानुं काठिन्य. २ जिनाज्ञाधारि साधुओने पण अध्ययननिमित्ते योगोदहन क्रियानी आवश्यकता. तेथी सार्वजनिक उपकार करवा माटे कर्तार आ मूल प्रकरण बनावेल छे.. ___सज्जनो ! जाणमांज हशे के "परिचय ए प्रवृत्तिनुं कारण है" तेथी आ श्रीदडकविस्तराध केटला भागमां केवी रीते व्हेंचा. येल छे ? आ बाबत पण टुंक परिचय कराववो व्याजबीज छे. त्रण विभागे व्हेंचाएल आ ग्रन्थना कर्ताए १. प्रथमविभागे-मंगलाचरणादि करवापूर्वक चोवीश दंडकोना नामो, तथा भेद प्रभेदतुं सविस्तरवर्णन, तेमां उपयोगी प्रश्नोत्तरो, चोवीशे द्वारोनुं सविस्तर स्वतंत्रवर्णन करवा पूर्वक चोवीशे दंड. कोमा ते द्वारो समजावी, पर्यन्ते श्री परमात्मापासे स्तुतिद्वारा मोक्षपदनी प्रार्थना करी तथा स्वपरिचय करावी ग्रन्थसमाप्ति करैल छे. २ द्वितीय विभागे-दंडकार्य विषयक बेस्तवनो तेमां १--प्रथम स्तवन श्रीउत्तमविजयजी महाराजना शिष्य पण्डित श्रीपद्मविजयजीगणिएभावनगरमां रचेल छे. जेमा २४ दंडकोमा २९ द्वारो टुंकमां समजावेल छे. तेमां २४ द्वारो उपरांत १ नामद्वार जेमां २४ दंडकोना नामो दर्शावेल छ.२ संपदाद्वार.जेमां १४ चक्रवर्तिना रत्नो तथा तीर्थंकरादि १. सर्वमली २३ संपत्तियो कहेल छे. ३
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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