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________________ ॥ शरीरावगाहनाद्वारवर्णनम्॥ (५९) अवतरण-पूर्वगाथावत्. गभतिरि सहस जोयण, वणस्सई अहियजोषणसहस्सं । नरतेइंदि तिगाऊ, बेइंदिय जोयणे बार ॥ ७ ॥ ॥ संस्कृतानुवादः ।। गर्भजतियचः सहस्रयोजनाः, वनस्पतिरधिकयोजनसहस्रः। नरत्रीन्द्रिपास्त्रिगव्यूता, दीन्द्रिया योजनानि बादश ॥७॥ शब्दार्थः ॥ गप्मतिरि-गर्भजतिर्यंच. नर-मनुष्य. सहस-हजार. तेइंदि-त्रीन्द्रियजी जोयण-योजन.. ति-त्रण. वणस्सइ-वनस्पति. गाउ-गाउ. अहिय-कंडकअधिक. बेइंदिय-दीन्द्रिय. जोयणसहस्सं-१००० योजन. जोयणे-जोजना बार-बार (१२) गाथार्थ:-गर्भजतिर्यंच (शरीर)१००० योजन, के नस्पति (शरीर) कंइक अधिक १००० योजन, मनुष्य अने वीन्द्रियजीवो (तुं शरीर) ३ गाउ, अने द्वीन्द्रिय (तुं शरीर) १२ योजन छे. विस्तरोध:--गम्भतिरि सहसजोयण एटले " ग. तिर्यंचनुं शरीर उत्कृन्थी १००० योजन लांबु होय छे" ए १००० योनुं शरीर ते गर्भज मच्छरूप जळचर तिर्यच पंवेन्द्रियर्नु होय छे पण दरेक गर्भजति नुं नहिं ते सिवायना बीमा गर्भजतियच तथा दंडकमां अनधिकारी समु० ति० पंवेनां शरीर आ प्रमाणे छे. '
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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