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॥ दंडकपणेतुः प्रभुनीमार्थना ।।
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संभूतल पृथ्वी मर्याद, सातशें नेवू जोजन संवाद, ताराथी दश जोजन रवि, अंशी जोजन तिहाथो शशि पवि॥१०॥ नक्षत्र बुध जोजन चार चार, शुक्र गुरु मंगल शनि त्रण धार; ज्योतिषीनो छे असंख्य विमान, हवे देवलोकनी संख्या जाण।।११॥ बत्रीश अडवीश बार अड चार, लाख शब्द जोडीए उदार: पचास चालिश ने छ हजार, आनत प्राणते चउ शत धार ॥१२॥ आरण अच्युते पणशें रखा, ए मान विमान संख्यामां लक्षा, प्रथम त्रोके एफसो अग्यार, बीजे एकसो सात विचार ॥१॥ त्रीजे सो ने उपरि पंच, अनुत्तरमा पण पुण्यनो संच: बार जोजन उंची सिद्धशिला, द्वार२४'प्राण कहुं हवे दश माहीला१४ फरस इन्द्री तनु बळ श्वासोश्वास, आउखु ए थावर होय तास; रस इन्द्री ने वचन सहित, बेइन्द्रियने षट् ए रीत; नारक सहित तेइन्दिने सात चौरेन्द्रिने चक्षु अवदात; मन ने श्रोत्र इन्द्रिय ए युत, शेष दंडकने दश ए उत्त ॥१७॥
॥ ढाळ ६ हो.॥
राग वेलावल. (छार २५) नवनिधान चोद रतन ए. भाख्या भगवते चक्र, छत्र, दंड, असि वलि, कांगणी, चर्म मणि,
ते नमिये जिनरायने ॥१॥ सात एकेंद्रिय रतन ए, गाथापति, सेनापति: पुरोहित, वार्षिक, अश्व, गज, स्त्री संपत्ति. ते ॥२॥ तीर्थकर, चक्री. पळ, वासु, केवलि, साधु, श्रार; समकिति, मंडलिक मळि, सनि त्रैवीश लाधु. ते ॥३॥
२४ प्रागदश आगल का छे ते. २५. चौद चक्रवर्तिना रत्न अने नव तीर्थकरादि मली २३ संपत्तिद्वार.
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