SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ पं०पद्मविगणि प्रणीतम्॥ (१५७) (बार-१९) थावर पंचनेरे, चार पर्याप्ति अगली, विगलेन्द्रियनेरे, टाळो मन एक छेहली; शेष सर्वनेरे, षट् पर्याप्ति द्वारे भणी, (द्वार-२०) द्वार वीसमुरे, भाखे हषे त्रिभुवनधणी ॥१॥ [त्रुटक] मनुष्य तिरि विगलेन्द्रि पण ए दंडके त्रण आहार ए शेषने करल आहार टाली दोय आहार निरधार ए; (द्वार-२१) तिरि पंचेन्द्रि मनुजमांहि.नारकी जाइ सहि, आवे पण ए बिहुमांथी पाये वेदना बहुतही ॥२॥ ( ढाळ ) व्यंतर ज्योतिषिरे, भुवनपति वळी जाणीए, सोहम इशानरे, पांच दंडकमांहि आणोए; पृथ्वी अरे, वण तिरि पंचेन्द्रिय मनु, उपजे तिहार, तिरि पंचेन्द्रि मनुज ननु ॥२॥ (घुटक ) त्रीजाथी सहसार जावत गत्यागति मनु तीरितणी, नवमाथी सर्वार्थसिद्ध मनुजनी जिनवरे भणी; चोविशमाहे मनुज जाए, भाय तेउ वाउ विणु, चोवीशमाहे गत्यागति करे तिरि पंचेन्द्रिय घणुं ॥४॥ ( ढाळ ) गति आगतिरे. विगलेन्द्रिने दश दंडके, निरि पंचेन्द्रिरे, थावर विगल मनुज जीके; भू अप वणनेरे, एहीज दशनी गति कही, वीशमारे, नारक विणु आगति लही (घुटक ) नवनी गति आगति दशनी तेउ वाउने तदा, २० आहार पर्याप्त, शरीरप०, इन्द्रिय प. उच्छवास पo, भाषा पर्या० मनः पर्या० ए ६ पर्याप्ति छे, २१ ओजसूआहोर, लोमआहार, प्रक्षेपाहार ( कवलाहार ). ए ३ आहार छे, २२ अमुक दंडकना जीव कया कया दंडकमां जइ उपजे ते गति, अमुक दंडकमां कया कया दंडकना जीवो आवी उपजे ते आगति,
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy