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________________ ध्यादि प्रत्यक्ष ज्ञानरहित-अने तेज हेतुथी अमुकज वाचनापाठ सस्य छे.एवो निश्चय करवो अशक्य जाणनार संघनायक पूज्यपाद-श्री देवाडिगणि क्षमाश्रमण महाराजा विगेरे आचार्य महाराजाओए ते ते वाचनाओना पाठो परस्पर अविसंवादपणे स्मरणने अनुसारे तदवस्थन पुस्तकारूढ कर्या, जेथी आज मुधी पण तेज परति तदवस्थभावे दृष्टिगोचर थायछे जेमां अवसाने 'आ बे अर्थमां सत्य अर्थ कयो ? ते केव लिगम्य छे एवो उल्लेख देखायछे. आ श्रीदंडकपकरणनो अनुवाद-छूटा शब्दार्थ मास्तर. चंदुलाल नानचंदे लखेल छे. अने प्रकरणना विषमस्थलोने सैद्धान्तिक सरलशैलीए स्पष्ट विवेचन टिप्पणी यन्त्रादि साथे समजावनार-मारा परमोपकारिशिरोमणि- चारित्रादिगुणोने वृद्धि पमाडनार- उत्तम ब्रह्मचर्यादि लोकोत्तर सद्गुणोने धारण करनार--जंगमकल्पतरु -कलिकाले श्री गौतम गुरुसमान-श्री जैनेन्द्रशासनतीर्थरक्षणपरायण--परोपकारशील-भावकरुणाजलनिधि-पूज्यपाद-प्रातःस्मरणीय-भावाचार्य पुरंदर-श्रीस्थानांगोक्त पञ्चातिशयधारक-तपोगच्छाचार्य श्रीपरम गुरुवय श्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वरभगवत्पपूर्वांचलनभोमणिसदाचारशीलवैराग्यगुरुभक्तिपरायण, वासीचंदननी माफक भव्य जीवोने श्रुतादिना अध्यापनादिद्वारा कृतार्थी बनावनार-मारा श्रुनादिपाठक, सत्कृतिसांनिध्यकारक-परमोपकारी गीतार्थ मुख्यसिद्धान्तवाचस्पति-न्यायविशारद पूज्यपाद श्रीमद्विजयोदयसूरिजी महाराज छे. जेथी तेओश्रीनो आ अनहद आभार अनाग्रहीगुणग्राही तत्वरसिक भव्यजीवोने अविस्मरणीय छ, पयन्ते भव्यजीवो आ ग्रंथना अध्ययन-अध्यापन-मनन-अने निदिध्यास. नद्वारादंडकोर्नु यथार्थ स्वरूप समजी, शुभ दंडकोने सुवर्णनी बेडी समान, अने अशुभ दंडकोने लोहनी बेडी समान गणी, पोताना
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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