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॥ दंडकविस्तराथः ॥
॥ मनुष्यनुं आयुष्य ॥
मनुष्योनुं
जघन्य
उत्कृष्ट
देवकरुमा पर्या नुं | देसूण ३ पल्यो० गं ३ पल्यो उत्तरकुरुमां " हरिवर्षमा " देसूण २ पल्यो० | संपूर्ण २ पल्यो. रम्यकमां " हिमवून " देसूण १ पल्यो० | संपूर्ण १ पल्यो हिरण्यवंत " अन्तद्वीपोमां" | देसूण पल्योपमासं- | पल्योपमासंख्येय
ख्येय भागः भागः महाविदेहमा " अन्तर्मु० पूर्वक्रोड वर्ष भरत-औरवत " | अन्तर्मुः ३ पल्योपम संमु० मनुष्य | लघु अन्तर्मु० अन्तमु अपर्याप्त युगलिकोन अन्तर्मु० लघु अन्तर्मुः
अहिं देसूण एटले पल्योपमनो असंख्यातमो भाग न्यून
जाणवो.