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माष्टी.
॥३०॥
अ०२
क्रोशा पृथुयोजनैखिमिरुपर्यभैः कुजान्मंडळ तद्नंतृगतोईपल्यपरमायुष्कत्रिसूत्रीयुतः। नीतस्तृप्तिमुदकशमींधनशृतैर्मास्तिलैस्तदुलै
रालाज्यागुरुणेज्यसे श्रवणमुझेपालपूज्यः शने ॥ ३४ ॥ हे शनैश्चर आगच्छ शनैश्चराय स्वाहा ।
त्यक्तारिष्टदरोनयोजनततस्वव्योमपानध्वज
चत्वारि व्रजदंगुलान्यहरहः षष्ठे च मास्दवम् । |ओह्रींमें "शुक्राय' जोडकर जलादि द्रव्य चढावे । यहां वायव्यविशामें फल्गुकाष्ठसे भुने || हुए जौ गुड घी मिलाकर अग्निमें आहुति दे। यह शुक्रकी पूजा हुई ॥ ३३॥ “क्रोशार्द्ध " इत्यादि श्लोकको पढकर “हे शनैश्चर" इत्यादिसे आह्वानादि करे फिर ओह्रींमें “शनैश्चराय"|| लगाकर जलादि अष्ट द्रव्य चढावे । यहांपर शमीकी लकडी उरद तिल चांवल | तथा राल घी अगुरुकी धूपसे आहूतियां दे। इस प्रकार शनैश्चरकी पूजा हुई ॥३४॥ " त्यक्त्वा " इत्यादि श्लोक पढकर “ हे राहो" इत्यादिसे आह्वानादि करे फिर ओह्रींमें || “ राहवे" लगाकर जलादि अष्ट द्रव्य चढावे। यहां दूवके ईधनसे पकाया गया काला किया गया गेहूं आदिका चून तथा दूध घी लाख इनकी धूपसे अग्निमें आहूतियां दे॥
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