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________________ पुष्पांजलि: । नागेंद्रचूर्णेन सितेन रैदपीतेन नीलप्रभनीलकेन । भक्ताभरक्तेन लिखासिताभकृष्णेन सन्मंडलामष्टिहृष्टः ॥ ७ ॥ चूर्णपंचकस्थापनं । | अथाधिवास्य चिद्रूपमित्यादिविधिना परम् । ब्रह्मार्हदादीन धर्म च मध्ये मंडलमर्चयेत् ॥ ८ ॥ पुष्पांजलिः । प्रत्यर्थिव्रजनिर्जयानिशलसद्धीवीर्यदृक्शर्मणो लोकेषु त्रिषु मंगलोत्तमविपत्राणोल्बणानात्यवत्धर्मचब्रुवतोभिदावदधतो यानुत्किरत्यात्मनो लोकेशानहमर्हितानघभिदेभ्यहमि तानर्हतः॥ ९ ॥ | | ॐ ह्रीँ अरिप्रमथनाद्रजोरहस्यनिरसनाच्च समुहिन्नानंतज्ञानादिचतुष्टयतया शक्रादिकृतामनन्यसंभ| विनीमर्हणामर्हतां मंगललोकोत्तमशरणभूतानामर्हत्परमेोष्टिनामष्टतयीमिष्टिं करोमीति स्वाहा ॥ १ ॥ पांच रंगोंको स्थापन करे। यह चूर्ण पांचका स्थापन जानना ॥ ७ ॥ उसके वाद निश्चयनयसे ( अभेद बुद्धिसे ) " चिद्रूपं ” इत्यादि आगे कहे जानेवाले श्लोकको पढकर कर्णि - कामें पुष्पांजलि क्षेपै और " स्वामिन् संवौषट् " इत्यादि आगे कहे जानेवाले श्लोकको | पढकर आह्वानन स्थापन सन्निधीकरण- इन तीनोंको करके अर्हतादिकी पूजा करे ॥ ८ ॥ उन अर्हतादिकोंकी पूजाके अर्ध कहते हैं । " प्रत्यर्थि " इत्यादि नवमां श्लोक पढकर फिर 1
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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