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प्र० सा० स्वमानंदानुबंधश्च प्रभूष्णोर्गर्भसंक्रमः । स्वप्मावलोकन मातुस्तत्फलश्रवणं तथा ॥ ९॥ भाण्टी०
गर्भशोधनशुश्रूषे देवीभिर्गर्भसंक्रमः । सांगसर्गक्रमः पित्रोः स्थाप्याचेंद्रेशतक्रिया ॥९१ ॥ ॥१०॥
अ०१ द्वितीये स जगत्क्षोभानंदं जन्म जिनेशिनः । निःस्वेदत्वाद्यतिशया विजयाद्यमरीकृते ॥९२|| जनन्युपासनाजातकर्मणी त्रिदशागमः । शच्याहतोर्पणं पत्युः सुमेरौ नयनं सुरैः ॥ ९३ ॥
स्नपनं चर्चनं भूषा नामकर्म स्तवक्रिया। नृत्यं नगर्यानयनं राजांगणनिवेशनम् ॥ ९४ ॥ || संनिधापनमंबायाः स्तुतिः प्राभृतनर्तने । रक्षादिकं राज्यभोगभुक्तिःस्थाप्येंद्रसेवया ॥९५॥ ४वतरण कल्याणकमें कुबेरकृत रत्नोंकी वर्षा, देवियोंसे की गई माताकी सेवा, श्री आदि षद ||
कुमारिका देवियोंसे की गई गर्भशोधना, स्वप्नोंके देखनेके वाद पतिके पास फल सुनना || उसके सुननेसे माताको आनंद, होनेवाले तीर्थकरका गर्भमें आना और इंद्रकर कीगई माता पिताकी पूजा-इतनी विधियां करनी चाहिये ॥ ८९।९०।९१ ॥ दूसरे कल्याणकमें-जगतमें क्षोभ होना आनंद होना, जिनेन्द्र तीर्थकरका जन्म होना, निःस्वेदता आदि जन्मके|| दश अतिशयोंका प्रगट होना, विजया आदि देवियोंकर माताकी सेवा जातकर्म संस्कार । देवोंका आना, इंद्राणीकर भगवान बालकको इंद्रकी गोदमें सोंपना, भगवान बालकको सुमेरु पर्वतपर लेजाना ॥ ९२२९३ ॥ वहां देवोंकर स्नान कराना, आभूए
। देवाकर स्नान कराना, आभूषण पहराना, नाम:|| हरखना, प्रभुकी स्तुति करना, नृत्य करना नगरीमें लाना राजमहलके आंगनमें पहुंचना|||| ॥१०॥
माताको बालक सुपुर्द करना फिर इंद्रको नृत्य करना प्रभुकी सेवाकेलिये देवोंको छोड।