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________________ प्र० सा०स्वरान् द्विशः पृथक्तद्वाहोदक्षिणवामयोः। कचवौं तथा कुक्ष्यष्टतवर्गी पृथक् पफौ ॥१४८ ॥माटी. noon| ऊर्वो गुपके नाम्यां भं मं मांसलतापदे । देहे य मूर्धा रं लं पृष्टेघिसंधि वं ॥ १४९ ॥ अ०४ शं जानुनोर्गुल्फयोः पादयोः संनिवेश्य है। सर्वप्राणपदे साक्षाजिनमेषोवतारये॥१५० ॥ | ओं ह्रीं अहं श्रीं एतत्पूर्वकानकारादिवर्णान शरश्चंद्रगौरान् यथोक्तस्थानेषु मनसा ध्यात्वा प्रतिष्ठेयप्रतिमासु करेण विन्यसेत् । तथाहि । ओं ह्रीं अर्ह श्री अ आ ललाटे दाक्षिणतः प्रभृति न्यसेत्, ओं ह्रीं अहं श्रीं इई दक्षिणेतरनेत्रयोः । एवं सर्वत्र । उऊ कर्णयोः ऋ ऋ नासापुटयोः, ताल लू गंडयोः, ए ऐ ऊर्ध्वाधो दंतपंक्त्योः , ओ औ स्कंधयोः, अं मस्तके, अ: जिह्वाग्रे, क ख ग व दक्षिणभुने, च छ ज झ ञ वामभुजे, ट ठ ड ढ ण दक्षिणकुक्षौ, त थ द ध न वामकुक्षौ, Iप दक्षिणोरी, फ वामोरी, ब गुह्ये, भ नाभिमंडले, म स्फिजोः, य शरीरस्थाने उदरे, र ऊर्ध्वरोमांचे हैं मस्तकादिकेशेष्वित्यर्थः, ल पृष्टे, व ग्रीवाकक्षादिसंधिषु, श जानुयुग्मे, ष गुल्फमूलयोः, स पदयोः है। सह सर्वप्राणस्थाने हृदये । इति मंत्रन्यासविधानं । अथ प्रतिष्ठातिलकदानं । भुजामें, चवर्गको वाई बांहमें, टवर्गको दाहिनी कूखमें, तवर्गको वाई कूखमें, पदाहिनी जां-18 धमें, फ वाई जांघमें, ब गुह्यस्थानमें 'भ नाभिस्थानमें, म चूतड़ोंमें, य उदरमें, र शिरके के-12 Oil॥१०॥ शाशोंमें, ल पीठमें, व गले कांख आदिकी संधिओंमें, श घुटनोंमें, पैरोंमें, हकारको हृदय स्थानमें, स्थापन करे ॥ १४७ । १४८ । १४९ । १५०॥ यह मंत्रन्यास विधि हुई । अब प्रति-18
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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