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________________ ओं ह्रीं परभृते देवि इदं.................. चक्रफलेढिवरांकितकरां महामानसीं सुवर्णाभाम् । शिखिगां चत्वारि पद्धनुरुबतजिनमतां प्रयजे ॥ १७० ॥ __ओं ह्रीं कंदर्पदेवि इंद.............................। सचक्रशंखासिवरां रुक्माभों कृष्णकोलगाम् । पंचत्रिंशद्धनुमुग जिननम्रो यजे जयाम्॥१७१ ओं ह्रीं गांधारिणी देवि इदं...................... स्वर्णाभां हंसगां सर्पमृगवज्रवरोदुराम् । चाये तारावतीं त्रिंशच्चापोच्चमभुभाक्तिकाम्॥१७२॥ 2 ओं ही कालिदेवि इदं...............................। पंचविंशतिचापोचदेवसेवापराजिता । शरभस्थाय॑ते खेटफलासिवरयुक् हरित् ॥ १७३॥ ओं ह्रीं मननातदेवि इदं................................। बोलकर परभृतादेवीको जल आदि चढावे ॥ १६९ ॥ “चक्रफले" इत्यादि तथा "ओहीं" बोलकर कंदर्पदेवीको जल आदि चढावे ॥ १७० ॥ “सचक" इत्यादि तथा " ओह्रीं"|| बोलकर गांधारिणी देवीको जल आदि चढावे ॥ १७१ ॥ " स्वर्णाभां" इत्यादि तथा “ओहीं बोलकर काली देवीको जल आदि चढावे ।। १७२ ॥ " पंचविंशति" इत्यादि तथा "ओहीं" बोलकर मनजातदेवीको जल आदि चढावे ॥ १७३ ॥ “पीतां" इत्यादि तथा
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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