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________________ तृतीयोऽध्यायः ॥३॥ अथातो यागमंडलपूजाविधानमभिधास्यामः निर्ग्रन्थार्याः प्रसादं कुरुत पदमिहायज्ञसद्धर्मदीप्त्यै देवाः सर्वेच्युतांता विकुरुत सुतनुं मामिमामेत शत्यैि । क्षप्त्वा कर्मारिचक्रं किमयित दसमस्फूर्जदावर्य तेजः सोद्यायं शासदीशस्त्रिजगदिह पशन स्थाप्यतेनुग्रहीतुम् ॥ १॥ प्रभावकसिंहसान्निध्यविधानाय समंतात् पुष्पाक्षतं क्षिपेत् । एते वर्षत्विहाशीमृतमृषिगणाः साधु हूत्वाभिराद्धा विश्वदेवाश्च शास्त्रव्रजनपरिजना नंतु विघ्नानिहैते । स्थानस्था एव चैनं सह सुरमुनयस्तेऽहमिंद्राः सुघंतु श्रद्धत्तायोमयाय जिनयजनविधिः प्रस्तुतोधीत्य सिद्धान् ॥२॥ अब याग मंडलकी पूजाकी विधि कहते हैं;-"निर्ग्रथा" इत्यादि कहकर जिनम-18 तकी प्रभावना करनेवालोंको निकट करके यज्ञमंडपके चारों तरफ पुष्प अक्षत क्षेपै ॥१॥2 “ एते वर्ष " इत्यादि श्लोक बोलकर साधर्मी भाइयोंके ऊपर पुष्प अक्षतकी वर्षा करे ॥२॥
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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