SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [५० ] १५ नाण - तीन अकर्म भूमी में ज्ञान पावे दोय - मतिज्ञान और श्रुतज्ञान; और छप्पन अंतद्वीपों में ज्ञान नहीं । अन्नाण-- छ्यांसी जुगलिया में अज्ञान पावे दोयमतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान । १६ जोग - छयांसी जुगलिया में योग पावे इग्यारह - ४ मनका, ४ वचन का औदारिक- शरीर काययोग, औदारिक-मिश्रशरीर- काययोग और कार्मण शरीर- काययोग | १७ उपयोग — तीस अकर्मभूमि में उपयोग पावे छह - दो ज्ञान, दो अज्ञान और दो दर्शन । और छप्पन अंतद्विपों में ४- दोय अज्ञान और दोय दर्शन । १८ आहार- दयांसी जुगलिया में २८८ बोलका आहार लेते हैं, जिसमें दिशी आसरी नियमा छह दिशी का । १९ उववाय - इयांसी जुगलिया में एक समय में ज० १-२-३ उत्कृष्टा संख्याता उपजे । -- २० स्थिति - पांच हैमवत और पांच हैरण्यवत इन दसों क्षेत्रों के मनुष्यों की स्थिति ज०देसऊणा एक पल्योपम की उत्कृष्टी एक पल्योपम की। पांच हरीवास और पांच रम्यकवास इन दसों क्षेत्रों के मनुष्यों
SR No.022356
Book TitleLaghu Dandak Ka Thokda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages60
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy