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________________ [३६] दर्शन पावे दोय दोय- चक्षु दर्शन और अचक्षु दर्शन । १५ नाण-- तीन विकलेन्द्रिय और प्रसन्नी तिर्यच पंचेन्द्रिय में ज्ञान पावे दोय दोय- मतिज्ञान और श्रुतज्ञान ।अन्नाण-तीन बिकलेन्द्रिय और प्रसन्नी तिर्यंच पंचेन्द्रिय में अज्ञान पावे दोय दोय- मति अज्ञान और श्रुत अज्ञान । १६ योग -तीन बिकलेन्द्रिय और असन्नी तिर्यच पंचेंद्रिय में योग पावे चार चार-व्यवहार वचनयोग, औदारिक शरीर काययोग, औदारिक मिश्रशरीर काययोग और कार्मणशरीर काययोग ।। १७ उपयोग--बेइंद्रिय और तेइंद्रिय में उपयोग पावे पान पांच-दो ज्ञान, दो अज्ञान और एक अचक्षु दर्शन, चौरिन्द्रिय और असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय में उपयोग पावे छह छह-दो ज्ञान, दो अज्ञान और दो दर्शन। १८ आहार-- तीन विकलेंद्रिय और असन्नी तिर्यच पंचेंद्रिय में आहार २८८ बोल का लेते हैं, जिसमें दिशी आसरी नियमा छह दिशी का। १६ उववाय--तीन विकलेंद्रिय और असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय में एक समय में जघन्य एक, दो तीन यावत् संख्याता, उत्कृष्ट असंख्याता उपजे।
SR No.022356
Book TitleLaghu Dandak Ka Thokda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages60
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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