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प्रकाशकीयम् गुरुजन, मानव जीवन को सही दिशा प्रदान करते हैं। सच्चा मार्गदर्शन देते हैं। गुरु ही वह पारसमणि है जो जंग लगे लोहे के समान अनेक दुर्गुणों से युक्त मानव के जीवन को कंचन बना देते हैं। ऐसे ही परम कारुणिक गुरुदेव हैं-प्रतिष्ठा शिरोमणि, अष्टापद तीर्थसंस्थापक, शास्त्र विशारद, कविभूषण, साहित्यरत्न आचार्य श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वरजी महाराज साहब।
आपके द्वारा विरचित सत्साहित्य जन-जन में धार्मिक, साहित्यिक एवं तार्किक जागृति का संचार करता है। सम्प्रति "श्री जैन सिद्धान्त कौमुदी (संस्कृत)" के माध्यम से आपने ऐसा ही सदनुष्ठान सम्पादित किया है। आपका जीवन अधीतमध्यापितमर्जितंयशः का असाधारण उदाहरण है। ___'श्रीजैन सिद्धान्त कौमुदी (संस्कृत) की प्रकाशन वेला में हम हर्षित हैं तथा आशा करते हैं कि पाठकगण इस पुस्तक को आत्मसात् करके अपने मानव जीवन को सद्गुण सौरभसे महकायेंगे।
प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशन में सहयोगी महानुभावों का हम हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं। - श्री सुशील-साहित्य प्रकाशन समिति,
जोधपुर
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