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है। सूक्ष्म से सूक्ष्म विषयों परभी आपने व्यापक प्रकाश डाला है। IS जैनमत स्थापना करते हुए आपने जैनेतर दर्शनों के मौलिक ॐ सिद्धान्तों को उपयुक्त रीति से साधिकार प्रदर्शित कर प्रस्तुत ग्रन्थ
की गरिमा बढ़ा दी है। यत्र तत्र समन्वय की रति का प्रस्फुटन आपकी सदाशयता का प्रतीक है।
यह ग्रन्थ जिज्ञासु मुनिराजों, दर्शन के विद्यार्थियों एवं शोधकर्ताओं के लिए नितान्त उपादेय सिद्ध होगा - इसी मंगल मनीषा के साथ -
- शुभाकांक्षी आचार्य शम्भुदयालपाण्डेय व्याकरणाचार्य, साहित्यरत्न,
एम.ए., शिक्षाशास्त्री 10/430, नन्दनवन कुलवन्ती कुञ्ज, जोधपुर-8 फोन : 2755647
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