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. न्यास/निक्षेप . विश्व के सर्वव्यवहार तथा ज्ञान भाव के लिए प्रमुख साधन & भाषा है। भाषा, शब्दों से बनती है, वे शब्द; प्रयोजन अथवा प्रसंग
के अनुसार अनेक अर्थ प्रदान करते हैं। लक्षण और भेदों के द्वारा | विश्व के पदार्थों का ज्ञान जिससे विस्तार के साथ हो सके - ऐसे व्यवहार रूप उपाय को न्याय या निक्षेप कहते हैं। तत्त्वार्थाधिगम सूत्र में कहा है -
नाम - स्थापना - द्रव्य - भावतस्तन्न्यासः
इससे ज्ञान होता है कि न्यास/निक्षेप चार प्रकार के होते हैं। नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव इन चार अनुयोगों के द्वारा | जीवादि तत्त्वों का न्यास-निक्षेप अर्थात् लोक-व्यवहार होता है - १. नाम निक्षेप
वस्तु का नाम ही नामनिक्षेप कहलाता है। अर्थात् जिस | शब्द की व्युत्पत्ति आदि से भी सार्थकतासिद्ध नहीं होती है, केवल लोकरूढि से ही संकेतित है उसको नामनिक्षेप कहते हैं। जैसे - जीव या अजीव किसी भी द्रव्य की 'जीव' संज्ञा रख देने से उसको | नाम जीव कहते हैं। २. स्थापना निक्षेप
स्थापना का तात्पर्य है - आकृति या प्रतिबिम्ब। किसी भी काष्ठ चित्र अक्ष निक्षेप आदि में 'यह जीव है' इस प्रकार का 38888888888888888888888888888888
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