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8888888888888888 4.बन्ध
जीवात्मा और कर्म के एक क्षेत्रावगाह को 'बन्ध' कहते हैं। | अर्थात् जीवात्मा के साथ कर्मपुद्गलों का नीर-क्षीरवत् एकमेक रूप सम्बन्ध द्रव्यबन्ध है तथा द्रव्यसम्बन्ध में कारणभूत जीवात्मा का अध्यवसाय परिणाम-भावबन्ध है।
5. संवर
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संव्रियते कर्म कारणं प्राणाति पहिनिरुध्यते
येन परिणामेन सः संवरः। आत्मा के जिन परिणामों के कारण शुभाशुभ कर्मों का | आगमन रुक जाता है - उसे 'संवर' कहते हैं। अथवा जीवात्मा में
आते हुए कर्मों को जो रोकता है उसे संवर कहते हैं। दूसरे शब्दों में ॐ हम यह भी कह सकते हैं - आस्रव का निरोध ही संवरतत्त्व है। 6. निर्जरा
निर्जरण-विशरणं-परिशटनं निर्जरा। अर्थात् कर्म का | बिखरना, झड़ना, सड़ना, विनष्ट होना ही निर्जरातत्त्व है। कर्मों 8 का एक देश रूप से जीवात्मा से सम्बन्ध छूट जाने को निर्जरा & कहते हैं। आत्मप्रदेशों से कर्मपुद्गलों का मुक्त होना ही द्रव्य निर्जरा है। द्रव्य निर्जरा से उत्पन्न आत्मा का शुद्ध अध्यवसाय
अर्थात् परिणाम 'भाव निर्जरा' कहलाता है। 888888888888888
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