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५.आस्तिक्य: जीवादिक पदार्थों का जो स्वरूप सर्वज्ञ वीतराग श्री अरिहन्त ने कहा है - वही सत्य है - ऐसी अटल श्रद्धा को. 'आस्तिक्य' भावना कहते हैं।
इन प्रशम आदि पञ्चलक्षणों द्वारा आत्मा में सम्यग्दर्शन गुण की पहचान होती है। वह सम्यग् दर्शन निसर्ग से (स्वाभाविक) परिणाम से तथा अधिगम से उत्पन्न (प्रगट) होता है।
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पदार्थों को यथार्थ रूप में जानने के लिए अभिरुचि मनुष्य में दो कारण से उद्भूत होती है। वे दो कारण हैं - (१) सांसारिक (२) आध्यात्मिक।
जो धन-धान्य प्रतिष्ठादि सांसारिक वासनाओं के लिए तत्त्वजिज्ञासा-पदार्थज्ञान होता है, वह सम्यग् दर्शन नहीं होता है, क्योंकि उसका परिणाम मोक्ष प्राप्ति न होकर संसार वृद्धि है। अत: आध्यात्मिक विकास के लिए तत्त्वजिज्ञासा ही 'सम्यग् दर्शन' है।
— सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति अन्तरंग और बाह्य निमित्त से होती है। केवल अंतरंग निमित्त से प्रगट होने वाला सम्यग्दर्शन निसर्ग सम्यग् दर्शन तथा बाह्य निमित्त द्वारा प्रेरित अंतरंग निमित्त
से प्रगट होने वाला दर्शन 'अधिगम सम्यग् दर्शन' कहलाता है। 888888888888888
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