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________________ (२२) उपदेश तथाटनगरमें उस समय विद्वानभी थे, IT मिली थी प्रतिष्ठित हुए थे । क्षेमकीर्ति भट्टारक उस समय मौजूद भी थे और उनके उपदेश तथा आदेशसे उक्त जिनालयमें कितनेही चित्रोंकी रचना हुई थी । वैराटनगरमें उस समय भट्टारक हेमचन्द्रकी प्रसिद्ध आम्नायको पालनेवाले 'ताल्हू' नामके एक विद्वान्भी थे, जिनके अनुगृहसे फामनको धर्मका स्वरूप जानने आदिमें कितनीही सहायता मिली थी । परन्तु उसका वह सब जानना उस वक्त तक प्रायः सामान्य ही था जब तक कि कविराजमल्ल वहां पहुंचे और उनसे धर्मका विशेष स्वरूपादि पूछा जाकर लाटीसंहिताकी रचना कराई गई । इस तरह पर कविराजमल्लने वैराट नगर, अकबर बादशाह, काष्ठासंघी भट्टारक वंश, फामन कुटुम्ब, स्वयं फामन और वैराट जिनालयका कितनाही गुणगान तथा बखान करते हुए लाटीसंहिताके रचना सम्बन्धको व्यक्त किया है । परन्तु खेद है कि इतना लम्बा लिखने परभी आपने अपने विषयका कोई खास परिचय नहीं दिया-यह नहीं बतलाया कि आप कहाँके रहनेवाले थे, किस हेतुसे वैराट नगर गये थे, कौनसे वंश, जाति, गोत्र अथवा कुलमें उत्पन्न हुए थे, आपके माता पिता तथा गुरुका क्या नाम था और आप उस समय किस पदमें स्थित थे । लाटीसंहितासेअग्यात्मकमलमार्तण्डसेमी-इन सब बातोंका कोई पता नहीं चलता । हाँ, लाटीसंहिताकी प्रशस्तिमें एक पद्य निम्न प्रकारसे जरूर पाया जाता है:-- एतेषामस्ति मध्ये गृहवृषरुचिमान् फामनः संघनाथस्तेनोच्चैः कारितेयं सदनसमुचिता संहिता नामलाटी । कवि राजमल्ल वैराट नगरके निवासी नहीं थे वल्कि स्वयंही किसी अज्ञात कारण वश वहां पहुंच गये थे, यह बात नीचे लिखे पद्यसे प्रकट है, जो संहितामें फामनका वर्णन करते हुए दिया गया है-- येनानन्तरिताभिधानविधिना संघाधिनाथेनयद्धर्मारामयशोमयं निजवपुः कर्तुं चिरादीप्सितं ॥ तन्मन्ये फलवत्तरं कृतामिदं लब्ध्वाधुना सत्कविम् । वैराटे स्वयमागतं शुभवशादुर्वीशमल्लाह्वयं ॥ ७५ ॥
SR No.022354
Book TitleLati Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikchandra Digambar Jain Granthmala Samiti
PublisherManikchandra Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages162
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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