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________________ दससहसवरिस-दश हजार वर्ष. निरय-नारकी. डिई-स्थितिवाळा. वितरिया-व्यंतर देवो. भवणाहिव-भवनपति. विस्तारार्थः-(पुढवाश् दसपयाणं के० ) पृथिव्यादिदशपदानां, एटले पृथ्वीकाय ने आदि जेमां, एवां पृथ्वीकायादिक दश पद, तेमां पांच स्थावरना पांच दमक, तथा त्रण विकलेंद्रियना त्रण दंगक, अने तिर्यच पंचेंद्रियनो एक दंमक, तथा मनुष्यनो एक दंगक, एवं दश पदरुप दश दमकने विषे (जहन्नथाउठिई के०) जघन्यायुःस्थितिः, एटले जघन्यथकी आयुनी स्थिति (अंतमुहुत्तं के ) अंतर्मुहूर्त एटले 'एक अंतमुहूर्तनी जाणवी, तथा (जवणादिव निरयवितरीया के० ) जवनाधियनिरयव्यंतरिकाः, एटसे अनुक्रमे जवनाधिप ते जवनपतिना दश दंगक अने निरय नारकीनो एक दमक, तथा व्यंतर देवोनो एक दमक, एवं बार दंगकना जीवो (दससहसवरिसहिई के०) दशसहस्रवर्षस्थितयः, एटले दश हजार वर्षनी स्थितिवाळा जाणवा ॥१७॥
SR No.022340
Book TitleDandak Tatha Laghu Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages174
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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