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________________ ३१ ळा कर्मभूमिना सम्यग्दृष्टि प्रमत्त गुणठाणे वर्त्तता बुद्धिए प्राज्ञ एवा मुनि आहारक शरीर करे बे. शरीरनुं समचतुरस्र संस्थान होय, ते गर्भज मनुष्यने होय, पण समूर्हिम मनुष्यने यदारिक, तैजसाने कार्मण ए ए ऋण शरीर होय. एवं ऋण दंमके शरीर कह्यां; अने (सेस के० ) शेसाः, एटले शेष रह्या जे एकवीश दमकवालां जीव, ते (तीसरीरा के ० ) त्री सरीराः, एटले त्रण शरीरवाळा होंय ते यावी रीते - नारकीनो एक दंगक तथा देवोना तेर मंक, एवं चौद दंमकने विषे तो एक वैकिय, बीजुं तैजस, अने त्रीजुं कार्मण ए त्रण शरीर होय. तथा एक वायुकाय विना चार यावरना चार दमक तेमज त्रण विकलें प्रियना त्रण दमक, ए सात inst विषे एक श्रदारिक, बीजुं तैजस अने त्रीजुं कार्मण, ए त्रण शरीर होय. ए चोवीश के पांच • शरीरनुं प्रथम द्वार क. हवे बीजुं अवगाहना एटले शरीरना उंच पणाना प्रमाणनुं द्वार कहे छे. ( यावरच उगे के० ) स्थावरचतुष्के, एटले एक वनस्पतिकाय मूकीने बाकी चार स्थावरने विषे एक
SR No.022340
Book TitleDandak Tatha Laghu Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages174
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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