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________________ त्रण प्रकारनी , एक दीर्घकालिकी संज्ञा, बीजी हेतु. पदेशिकी संज्ञा, त्रीजी दृष्टिवादोपदेशिको संज्ञा. तेमां जे घणा कालनी वात जाणे, एटले त्रिकालिक वस्तुनुं जाणपणुं, ते दीर्घकालिकी संज्ञा. ए संज्ञा पंचेंद्रिय पर्याप्ता जीवने होय, तथा जे पोताना शरीररक्ष ने अर्थे इष्ट वस्तुमा प्रवतें अने अहित वस्तुथी निवर्ते, तथा तेनुं चिंतन वर्तमान कालमां पण रहे. ते हेतुपदेशिकी संज्ञा जाणवी. ए बेजियादिक विकलेंघिय जीव जे पोताना हितनी वात जाणे, तेने होय. तथा दायोशमिक ज्ञानवाळा अने यथाशक्ति रागादि दोषने वश करनार अने छादशांगीना जाणनार समयग्रदृष्टिमां दृष्टिवादोपदेशिकी संज्ञा होय, परंतु र संझा मिथ्यातवीमां न होय, ए त्रण संझामांहेली जे दंमके जेटली संज्ञा लाने, त्यां तेटली क हेवी, ते एकवीसमुं संझाहार.. २५ बावीसमुं (ग के०) गतिः, एटले गतिहार. ते गमन करवू, तेने गति कहीए. एटके नवांतरने विषे जq ते गति. तेमां चोवीश दमकमांहेला कया
SR No.022340
Book TitleDandak Tatha Laghu Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages174
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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