SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जाणपणुं ते मतिअज्ञानादिक त्रण प्रकारे बे; केमके मिथ्यात्वीने कुदेव, कुगुरु अने कुधर्मनी श्रद्धा प्रतीत ने माटे, अने जाणपला आश्री जोश्र तो, ए हाथी बे, ए घोमो डे, ए पुरुष बे, ए स्त्री डे, एम केटलीएक वस्तुनी उलखाण समकिती तथा मिथ्यात्व ए बेजने बराबर , माटे एटलुं मिथ्यात्वीन जाणपणुं पण खरं बे, तेथी तेने ज्ञान कहीए, अने कुदेवने देव करी माने कुधर्मने धर्म करी माने, तथा कुगुरुने गुरु करी माने बे, तेमज बीजी पण केटली एक वस्तु समकिती जीवथी मिथ्यात्वी जीव विपरीत माने जे. जेम को एक जातना जीवने अजीव करी माने बे, इत्यादिक वातोश्री मिथ्यात्वीना झानने अज्ञान कही. ए, अने पूर्वोक्त रीते कोश्क सबलु पण जाणे, माटे त्रण अज्ञानने पांच ज्ञाननी साथे मेलवतां सामान्ये आठ ज्ञान थयां, तथा चोर दर्शन , तेमां बद्मस्थने प्रथम दर्शनोपयोग होय, ते सामान्य उपयोग कहीए, अने पढ़ी ज्ञाने करी जाणे, ते विशेष उपयोग कहीए, अने श्री केवली नगवान् तो प्रथम स.
SR No.022340
Book TitleDandak Tatha Laghu Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages174
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy