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________________ गाढा के० ) अवगाढाः, एटले अवगाह्या बे, एटले जे पर्वत चारसे योजननो उँचो कह्यो बे, ते चारसे योजननो चोथो लाग एकसो योजन थाय, तेटलो पृथिवीतलमा उमो अवगाही रह्यो बे, अने पांच मेरु पर्वत जे , तेमा जे जंबूछीपनो मध्य मेरु बे, ते नवाएं हजार योजन ऊंचो , अने एक हजार योजन धरतीमा बे, सर्व मली लाख योजन ऊंचो . तथा बीजा चार मेरु जे बे, ते प्रत्येके एक हजार योजन नूमिमां बे, अने व्याशी हजार योजन ऊंचा ने ॥॥ खंगाईगादाए, दसहिं दारेहिं जंबुद्दीवस्स ॥ संघयणी समत्ता, रश्शा हरिनदसूरी दि॥३०॥ गाथा ३० मीना छुटा शब्दना अर्थ. खडाईगाहाए-खांडुआदिकनी संघयणी-संग्रहिणी गाथाए. समत्ता-समाप्त थइ दसहि-दश. रइआ-रचना करी दारेहि-द्वारे करीने हरिभद्दमुरीहि-श्री हरिभद्र :: जंबुद्दीवस्स-जंबूद्वीपनी सरिए.
SR No.022340
Book TitleDandak Tatha Laghu Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages174
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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