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________________ १९३ वितरिया के० ) वैमानिकजवन निरयव्यंत रिकाः, एटले वैमानिक देव, जवनपति संबंधी दश दंमकना जीव, सात नारकीना जीव छाने व्यंतर देवो, तथा ( जोइसच पण तिरिया के० ) ज्योतिष्कचतुरिंद्रियपंचेंद्रिय ति चः, एटले जोतिषी देवो, चरिंद्रिय, पंचेंद्रिय ने तिर्यचो, तथा ( बेइंद्रिय के० ) द्वीप्रियः, एटले बेईद्रिय, तथा ( इंद्रिय के० ) त्रींद्रियः, एटले तेंद्रिय, तथा (नू के० ) नूः, एटले पृथ्वी काय, तथा ( याउ के० ) आप:, एटले अकाय, तथा (वाज के ० . ) वायुः, एटले वायुकाय, तथा ( वणस्सई के० ) वनस्पतिः, एटले वनस्पतिकाय, ( कमेण मे के० ) क्रमेण इमे, (तेमां ) इमे एटले या सर्वे जीवो क्रमेण एटले नुक्रमे ( चिय के० ) एव, एटले निश्चये करी (छाहिया अहिया के ० ) अधिका अधिकाः, एटले अधिक अधिक अर्थात् प्रथम प्रथमथी पढीना पीना वधारे वधारे ( हुंति के० ) जवंति, एटले होय, ते नीचे प्रमाणे विस्तारथी जाणवुं, प्रथम सर्व थकी थोमा १ गर्न पर्याप्ता मनुष्य
SR No.022340
Book TitleDandak Tatha Laghu Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages174
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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