SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन भृत्यवच्चक्रवर्त्याद्याराधनादिकृतस्ततः। व्यन्तरा वाभिधीयन्ते नरेभ्यो विगतान्तराः ।।" व्यन्तर देव के भेद इस प्रकार हैं- १. पिशाच, २. भूत ३. यक्ष ४. राक्षस ५. किन्नर ६. किंपुरुष ७. महोरग और ८. गन्धर्व। पिशाच के १६, भूत' के ६, यक्ष के १३, राक्षस" के ७, किन्नर के १०, किंपुरुष के १०, महोरग के १० और गन्धर्व के १२ इस प्रकार व्यन्तरों के व्यन्तर देव पिशाच भूत यक्ष राक्षस किन्नर किंपुरुष महोरग गंधर्व हाहा कुष्मांड पटक जोष अहिनक काल चोक्ष अचोक्ष महाकाल वनपिशाच तूष्णीक ताल पिशाच मुखर पिशाच देह विदेह महादेह अधस्तारक सुरूप पूर्णभद्र विघ्नभीम प्रतिरूप मणिभद्र महाभीम अतिरूप श्वेतभद्र राक्षस भुतोत्तम हरिभद्र अराक्षस स्कन्दिकाक्ष सुमनभद्र विनायक महावेग व्यतिपाकभद्र ब्रह्मराक्षस महास्कन्दिक सर्वतोभद्र जलराक्षस आकाशक सुभद्र प्रतिच्छन्न यक्षोत्तम रूपयक्ष धनाहार धनाधिप मनुष्ययक्ष किन्नर रूपशाली हृदयगंम रतिप्रिय रतिश्रेष्ठ किंपुरुष मनोरथ अनिन्दित किंपुरुषोत्तम किन्नरोत्तम सत्पुरुष पुरुषोत्तम यशस्वान महादेव मरुत मेरुप्रभ महापुरुष अतिपुरुष पुरुषऋषभ पुरुष भुजग भोगशाली महाकाय अतिकाय भास्वंत स्कन्धशाली महेशवक्ष मेरुकांत महावेग मनोरम तुम्बरु नारद ऋषिवादक भूतवादक कदम्ब महाकदम्ब रैवत विश्वासु गतिरति सद्गतियश व्यन्तर देवों के आठ अवान्तर भेद भी कहे हैं- १. अणपन्नी २. पणपन्नी ३. ऋषिवादी ४. भूतवादी ५. कंदीत ६. महाकंदीत ७. कोहंड और ८. पतंग। अन्न-पान-वस्त्र-वसति-शय्या-पुष्प और फल इन वस्तुओं की कमी को पूर्ण करने वाले और कम रसवाली को रसपूर्ण करने वाले एक-एक देव जृम्भकदेव होते हैं। विद्या दान करने वाले विद्या मुंभक देव और सामान्य रूप से सभी वस्तुओं की वृद्धि करने वाले अव्यक्त जुंभक देव होते हैं। इस प्रकार दस तरह के जृम्भक देव होते हैं। व्यन्तर जाति के देवों के भेद-प्रभेदों सहित सत्तासी जातियाँ होती हैं। इस प्रकार ये व्यन्तर देव सब (८७+५+१०) मिलाकर १०५ प्रकार के होते हैं- 'शत पंचोत्तरं भेदप्रभेदैर्व्यन्तरामराः।"२६ ज्योतिषी देव- लोक को आलोकित करने वाले विमानों के वासी देव ज्योतिष कहलाते हैं।
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy