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________________ 66 लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन की वृत्ति में 'सोनी की एरण' यह अर्थ मिलता है। नखुरपदी- जिनके पैर श्वान के समान दीर्घ नख वाले होते हैं, उनको नखुर या नहोर कहते हैं। यथा- सिंह, व्याघ्र, गीदड़, तरक्ष, भालू, सियार, चीता, श्वान आदि। (ख) परिसर्पक स्थलचर- परिसर्पक स्थलचर तिर्यंचपंचेन्द्रिय जीव दो प्रकार के होते हैं- १. भुज परिसर्प और २. उरपरिसपा भुज परिसर्प- भुजाओं के बल पर चलने वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच भुजपरिसर्प कहलाते हैं, यथा-नेवला आदि। उर परिसर्प- जिन जीवों की उत्पत्ति जमीन पर होती है, परन्तु जो स्थल और जल दोनों में उर (छाती) के बल पर विचरण करते हैं वे उर परिसर्प जीव हैं। यथा-घड़ियाल, मगर आदि। स्थलचर चतुष्पद परिसर्पक उरपरिसर्पक भुजपरिसर्पक एक खुर वाला दो खुर वाला गंडीपद नखुर वाले (विभाग रहित खुर) (भाग सहित खुर) (स्तम्भ सदृश पैर वाले) (श्वान सदृश दीर्घ नख सहित) खेचर तिर्यच पंचेन्द्रिय-ख अर्थात् आकाशा आकाश में उड़ने वाले अथवा विचरण करने वाले जीव खेचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय कहलाते हैं। यथा- चिड़िया, कबूतर, तोता आदि। | परिसर्पक | भुजा से चलने वाले पेट से चलने वाले सर्प अजगर आसालिका महोरग नेवला सरड़ा गोधा ब्राह्मणी छिपकली छछंदर मुकुली दर्वीकर (फण सहित) (फण रहित) चूहा हालिनी जहक
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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