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लोक-स्वरूप एवं जीव-विवेचन (1) वह इस प्रकार है
संसारी जीवों के भेद दो भेद त्रस
स्थावर वेद की अपेक्षा तीन भेद
स्त्रीवेद
नपुंसकवेद | गति की अपेक्षा चार भेद | देवगति | मनुष्यगति
तिर्यचगति
नरक गति इन्द्रिय की अपेक्षा पाँच | एकेन्द्रिय । द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय | पंचेन्द्रिय भेद काया की पृथ्वीकाय । | अप्काय तेजस्काय वायुकाय वनस्पतिकाय । त्रसकाय अपेक्षा छह
पुरुषवेद
भेद
सूक्ष्म-बादर | सूक्ष्म बादर द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय संज्ञी। असंज्ञी की अपेक्षा एकेन्द्रिय एकेन्द्रिय
पंचेन्द्रिय पंचेन्द्रिय सात भेद पर्याप्त-सूक्ष्म
| सक्ष्म बादर बादर द्वीन्द्रिय |त्रीन्द्रिय | चतुरिन्द्रिय |पंचेन्द्रिय अपर्याप्त | पर्याप्त अपर्याप्त | पर्याप्त । अपर्याप्त
| एकेन्द्रिय एकेन्द्रिय एकेन्द्रिय एकेन्द्रिय अपेक्षा आठ
भेद
नव भेद | स्थावर
अंडज | रसज | जरायु | प्रस्वेद | सम्मूर्छिमज
| पोतज | उभेद
1.
एक पंचेन्द्रिय । तीन विकलेन्द्रिय
त्रसप्रभे | पाँच स्थावर द एवं 2. अन्य अपेक्षा दस भेद । तीन विकलेन्द्रिय
ग्यारह भेद
पाँच स्थावर
पृथ्वीकायादि पाँच एकेन्द्रिय | संज्ञी पंचेन्द्रिय असंज्ञी
पंचेन्द्रिय तीन विकलेन्द्रिय | पुरुष, स्त्री तथा नपुंसक तीन
पंचेन्द्रिय पृथ्वीकायादि छह अप्ति
पृथ्वीकायाद छह पर्याप्त
पृथ्वीकायादि छह पर्याप्त
बारह भेद तेरह भेद
पाँच स्थावर पर्याप्त
पाँच स्थावर अपर्याप्त
पुरुष, स्त्री और नपुंसक तीन त्रस