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________________ 36 लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन |५२ बादर एकेन्द्रिय भेद, स्थान आदि ३७ द्वारों से विवेचन, साधारण | वनस्पति, प्रत्येक वनस्पति आदि। | विकलेन्द्रिय (द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय एवं चतुरिन्द्रिय) एवं तिथंच पंचेन्द्रिय | जीवों का भेद स्थान आदि ३७ द्वारों से विवेचना सप्तम | सम्मूर्छिम एवं गर्भज मनुष्य का भेद, स्थान, पर्याप्ति आदि ३७ | द्वारों से विवेचना अष्टम | देव गति के जीवों का ३७ द्वारों से विवेचना नवम् नारकी जीवों का ३७ द्वारों से विवेचन। दशम | भवसंवेध प्रकरण में संसारी जीवों का भवसंवेध सम्बन्धी विस्तृत | विवेचना महा अल्पबहुत्व, जीवास्तिकाय के पाँच प्रकार, कर्मबन्ध | के मूल एवं उत्तर हेतु, कर्म के आठ एवं अवान्तर प्रकार, उत्कृष्ट तथा जघन्य स्थिति, अबाधाकाल, निषेक, पुण्य एवं पाप प्रकृतियाँ, घाती एवं भवोपग्राही (अघाती) प्रकृतियाँ। ग्यारहवाँ | १५८ | १३ | पुद्गलास्तिकाय का स्वरूप, स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणु, परमाणु का स्वरूप एवं उसके चार प्रकार, पुद्गल के दस प्रकार के परिणाम, संस्थान परिणाम, उसके भेदोपभेद, अजीव रूपी जीव के ५६३ भेद, शब्द परिणाम, छाया, आतप एवं उद्योत की | पौद्गलिकता। क्षेत्र लोक बारहवाँ | २७५ | २७ | लोक का स्वरूप, रज्जु, खंडुक, त्रसनाडी, रूचक प्रदेश, मध्यलोक, ऊर्ध्वलोक, अधोलोक का आकार तथा स्थान, दिशा-विदिशा, कृतयुग्म, सप्तविध दिशाएँ, रज्जु के प्रकार, लोक का प्रमाण, | अधोलोक का विशेष स्वरूप, सातों नरक भूमियों का विस्तृत विवेचन, व्यन्तर देवों का, उनके देव, देवियों का विवेचन। तेरहवाँ | ३१० १६ | भवनपति देवों का विस्तृत विवेचन, चमरेन्द्र, बलीन्द्र एवं भवनपति | के दस प्रकारों का विस्तृत विवेचना चौदहवाँ ३२६ | १८ नरकावासों का वर्णन, उनके शरीर, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, शब्द, | वेदना आदि की भयंकरता। उनके दुःखों का कथन। पारस्परिक
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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