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________________ उपाध्याय विनयविजय : व्यक्तित्व एवं कृतित्व केश, भामण्डल, वंश, ज्योत्स्ना, ध्वनि आदि का भी कथन हुआ है। श्लोक ४३ से ५० शान्तिनाथ की स्तुति से सम्बद्ध है। ५१वें श्लोक में ऋषभदेव एवं शान्तिनाथ दोनों को एक साथ प्रणाम किया गया वृषभमृगवरांको ध्वस्तसंसारपंकौ कनककमलकान्ती शान्तकर्मारितान्ती। त्रिभुवनजनगेयौ मारुदेवाचिरेयौ नुतिविरचनयुक्त्या भूरिभक्त्या प्रणम्या ।।" द्वितीय अधिकार में तपागच्छ के अधिपति के द्वारा पावन स्तम्भतीर्थ नगर का वर्णन किया गया है। इसके अन्तर्गत वप्र, वन, समुद्र, जिनमन्दिर, श्रेष्ठीभवन, उपाश्रय, चतुष्पथ आदि का वर्णन किया गया है। जिनमन्दिर का वर्णन करते हुए कहा गया है ___ यत्रानिशं भूरिविलासिलोकैरुत्कीर्णकृष्णागुरुधूपधूमैः । ___ विधोरधो ध्यामलितं तलं यल्लक्ष्मेति लोकैः परिचिन्त्यते तत्।।* तृतीय अधिकार का नाम उदन्त (समाचार) व्यावर्णन है। इसमें बारेंजा नगर का वर्णन किया गया है। प्रारम्भिक श्लोक द्रष्टव्य है सरोवरं यत्र मरुत्तरंगोच्छलत्तरंगोत्तरलं समन्तात् । अमुद्रमानेन समुद्रमानं समुद्रमानन्दि जिगीषु नूनम् ।। इसमें हेमचन्द्रसूरि का एक श्लोक भी उद्धृत किया गया है जिसमें वक्तृत्व और कवित्व को विद्वत्ता का फल निरूपित करते हुए शब्द ज्ञान के बिना दोनों को अनुपपन्न माना है वक्तृत्वं च कवित्वं च विद्वत्तायाः फलं विदुः। शब्दज्ञानादृते तन्न द्वयमप्युपपद्यते।।" चतुर्थ अधिकार में गच्छाधिपति विजयानन्द सूरी के बाह्य एवं आभ्यन्तर व्यक्तित्व का गुणगान किया गया है। इसके भी अन्त में चमत्कारिक चित्रकाव्य का प्रयोग किया गया है। जिनमें कहीं कर्ता गुप्त है तो कहीं क्रिया गुप्त है, कहीं कर्म गुप्त है, कहीं करण गुप्त है तो इसी प्रकार अन्य कारक भी व्यंजित है। पंचम अधिकार का नाम दृष्टान्त अधिकार है। इसमें लेख की प्रशंसा, लेख के भेदों आदि का वर्णन किया गया है। लेख की प्रशंसा में कहा गया है अनेकवर्णोत्तमरत्नपंक्तिविराजितो भूरिसदर्थशाली। मुद्राचिंतः स्वादररक्षणीयो लेखोऽनुते कोशगृहस्थ लक्ष्मीम् ।। लेख के सात भेद बताए गए हैं- १. व्यापार लेख २. कामलेख ३. स्नेहलेख ४. शेषलेख ५. शोकलेख ६. प्रमोदलेख ७. धर्मलेख। इन सात लेखों में उन्होंने धर्मलेख को सुख की सिद्धि देने वाला माना है। इसके अनन्तर सज्जनों और दुर्जनों के स्वभाव का वर्णन किया गया है। अन्त में
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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